माया नगरी की चकाचौंध के पीछे घने अंधेरे में गुम होते हुए फिल्मी सितारे

फिल्म अभिनेता सुशांत राजपूत द्वारा की गई आत्महत्या से एक बार फिर यह सच सामने आ गया है कि माया नगरी मुंबई की चकाचौंध के पीछे एक बहुत बड़ा अंधेरा है। इस अंधेरे का सामना कुछ लोग कर जाते हैं लेकिन कुछ लोग अवसाद का शिकार होकर मौत को गले लगा लेते हैं। इस साल अब तक चार कलाकार अवसादजनक स्थिति में मौत को गले लगा चुके हैं। सिने जगत

श्रद्धांजलि सुशांत

हिम्मत रखो, आत्महत्या न करो‘छिछोरे’ में दिया था यह संदेश,पटना के छोरे, तुमने क्या कियादुखी स्तब्ध, अश्रुपूरित है देश।ऊपर चढ़ते-चढ़ते ऐसे हीऊपर क्यों गए राजपूत सुशांत,हँसता खेलता युवा अभिनेताकर गया बॉलीवुड को अशाँत।चमक-दमक के पीछे मंडरातामायानगरी में है अंधेरा घनघोर,साँप-सीढ़ी के खेल में फंस करटूट जाती जीवन की डोर। – सर्वज्ञ शेखर

सप्ताहांत: कोरोना के साथ जीना सीखना है मरना नहीं

1 जून से अनलॉक-1 शुरू होने के साथ ही ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे कोरोना भी अनलॉक हो गया हो। शुक्रवार 05 जून को इन पंक्तियों के लिखने के पिछले 24 घण्टों में देश में कोरोना के मामलों में जबरदस्त उछाल आया है। विगत 24 घंटे में 9 हजार 851 नए मामलों की पुष्टि हुई और 273 लोगों की मौत हुई है।अब देश में कुल मरीजों की संख्या 2

2 जून की रोटी का उपहास न उड़ाएं

हर साल 2 जून आते ही सोशल मीडिया पर 2 जून की रोटी का उपहास उड़ाते हुए मेसेज आना शुरू हो जाते हैं। कोई कहता है कि दो जून को रोटी जरूर खाना क्योंकि 2 जून की रोटी बड़े नसीब वालों को मिलती है तो कोई फरमा रहे हैं कि केवल दो जून को ही रोटी खाना, यह फिर अगले साल ही मिलेगी। दो जून की रोटी का मतलब दो

सप्ताहांत: तेरा दुख और मेरा दुख

अभी कुछ दिनों पूर्व एक पत्रकार साथी का कोरोना बीमारी के कारण दुःखद निधन हो गया था। मैंने उनको श्रद्धांजलि देते हुए फेसबुक पर एक पोस्ट डाली थी कि “आज मैं बहुत दुखी हूं।” मेरी पोस्ट को पढ़कर मेंरे एक साथी फोन आया कि कोरोना से सैकड़ों लोग रोज मर रहे हैं, आपने कभी दुख व्यक्त नहीं किया पर आज आप ज्यादा दुखी क्यों हैं? यह एक ऐसा सवाल था

सप्ताहांत: यह पलायन नहीं है

घटना काफी पुरानी है। एक कार्यक्रम का संचालन करते समय एक अतिथि का जीवन परिचय बताते हुए मैंने कुछ ऐसा बताया कि शिक्षा पूरी करने के उपराँत वह दूसरे प्रदेश में पलायन कर गए। अतिथि महोदय थोड़ी देर में संयोजक को बता कर कार्यक्रम बीच में छोड़ कर चले गए। बाद में मुझे बताया गया कि मेरे द्वारा उनके परिचय में पलायन की बात कहने से वह नाराज थे। पलायन

समझिए लोकल का मतलब ग्लोकल के साथ

12 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम अपने संदेश को 20 लाख करोड़ के पैकेज के अलावा आत्मनिर्भरता पर केंद्रित रखा। उन्होंने लोकल सामान का उत्पादन करने, खरीदने और उसके प्रसार के लिए वोकल अर्थात मुखर रहने की अपील की। बड़ी सावधानी के साथ अपने पूरे भाषण में उन्होंने ‘स्वदेशी’ शब्द का प्रयोग ही नहीं किया। चाहते तो वह भी लोकल की बजाय स्वदेशी कह सकते थे।

सप्ताहांत: आओ! हम बनाएं, सकारात्मक वातावरण

लॉकडाउन में घरों में बंद रहने के कारण और कोरोना से संबंधित दुःखद खबरें देख-पढ़ कर ज्यादातर लोग अवसादग्रस्त हो रहे हैं। गुस्सा, चिड़चिड़ापन की शिकायतें आ रही हैं। ऐसी दशा में कुछ लोग आत्मघाती कदम भी उठा लेते हैं और अपने पूरे परिवार को तबाह कर लेते हैं। यह सब सकारात्मक वातावरण के अभाव में हो रहा है। यदि हम सकारात्मक वातावरण में रहें और सकारात्मक वातावरण न होने

पत्रकार जीवन की कुछ बातें आज अचानक याद आ गईं

आज एक प्रतिष्ठित न्यूज़ चैनल ने अति उत्साह में, मेरे विचार से ब्लंडर कर दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का भगवान बुद्ध जयंती पर देश को संबोधन सुबह 09 बजे होना था, परंतु चैनल ने वह रेकॉर्डिंग 08 बज कर 35 मिनिट पर ही दिखा दी। 09 बजे पुनः प्रसारण किया गया, जब सारे देश में संबोधन एक साथ हो रहा था। यद्यपि यह कोई अपराध नहीं है, बस प्रक्रिया