सप्ताहांत: रहिमन पानी राखिए

save water

रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून ।
पानी गए न उबरै, मोती मानुष चून ।।

जिस समय रहीमदास जी ने इस दोहे की रचना की थी, उनको कल्पना भी न होगी कि इक्कीसवीं सदी में उनकी लिखी पँक्तियाँ इतनी महत्वपूर्ण हो जाएंगी। जल संरक्षण के प्रति उदासीनता ने पीने योग्य स्वच्छ जल की इतनी कमी कर दी है कि पूरा विश्व इस विषय को ले कर चिंतित है।
संयुक्त राष्ट्र के तत्कालीन महासचिव बुतरस घाली ने 33 साल पहले पानी की कमी से होने वाली भयावहता को समझते हुए भविष्यवाणी की थी कि “यदि तीसरा विश्वयुद्ध हुआ तो वो पानी को लेकर लड़ा जाएगा। यह युद्ध पानी के स्रोतों और भंडार पर कब्जे को लेकर होगा।” 1995 में वर्ल्ड बैंक के इस्माइल सेराग्लेडिन ने पानी के वैश्विक संकट पर कहा था कि इस शताब्दी में तेल के लिए युद्ध हुआ लेकिन अगली शताब्दी की लड़ाई पानी के लिए लड़ी जाएगी। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी कहा था कि, ‘’ध्यान रहे कि आग पानी में भी लगती है और कोई आश्चर्य नहीं कि अगला विश्वयुद्ध पानी के मसले पर हो।”

पहला विश्वयुद्ध जमीन पर कब्जे को लेकर हुआ। उसके बाद के युद्ध के पीछे तेल और ऊर्जा का स्वार्थ था, तो अब पानी के लिए युद्ध की भविष्यवाणी की जा रही है। यह भविष्यवाणी यद्यपि अतिश्योक्ति सी लगती है, लेकिन जल की महत्ता और जल की बर्बादी के प्रति चिंता को तो परिलक्षित करती ही है।

इसी उद्देश्य से पर्यावरण और विकास संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन ने 1992 में पीने के पानी के अस्तित्व को लेकर एक अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाने का फैसला किया और इस तरह 22 मार्च 1993 को पहला विश्व जल दिवस मनाया गया। इसके बाद जल संरक्षण को लेकर संपूर्ण विश्व में कई तरह की योजनाएं बनाई गईं। हर साल एक विषय पर विश्व के बौद्धिक लोग काम करना शुरू करते हैं ताकि आने वाली पीढियों के लिए पीने योग्य पानी बचाया जा सके।

पिछले वर्ष विश्व जल दिवस का विषय ‘जल और जलवायु परिवर्तन’ रखा गया था। जबकि विश्व जल दिवस 2021 का विषय ‘वेल्यूइंग वॉटर’ अर्थात पानी को महत्व देना है। समय से साथ और बढ़ती जनसंख्या के कारण साफ पानी हर किसी को नसीब हो, वर्तमान में वैश्विक स्तर पर यह असंभव सा हो गया है इसलिए इस वर्ष यह विषय रखा गया है। विषय के अनुसार कोई भी व्यक्ति पानी की एक बूंद भी बर्बाद न करे तभी हम उसका संरक्षण करने में कामयाब हो सकेंगे।

जहाँ तक भारत का संबंध है, नीति आयोग का मानना है कि भारत जल संकट का सामना कर रहा है। यदि उपचारात्मक कदम नहीं उठाए गए तो वर्ष 2030 तक देश में पीने योग्य जल की कमी हो सकती है। भारत की पहली जल नीति वर्ष 1987 में आई थी, जिसे वर्ष 2002 एवं 2012 में संशोधित किया गया था।राष्ट्रीय जल नीति में जल को एक प्राकृतिक संसाधन मानते हुए जीवन, आजीविका, खाद्य सुरक्षा और निरंतर विकास का आधार माना गया है।नीति आयोग के अनुसार हमारे देश में जल का उपयोग बहुत अधिक एवं अनुचित रूप से किया जा रहा है। सिंचाई क्षेत्र में प्रयुक्त जल की दक्षता 30-38% है। जहाँ शहरी क्षेत्र में पीने योग्य जल एवं स्वच्छता के लिये जल की आपूर्ति का लगभग 40-45% तक बर्बाद होता है, वहीं दूसरी ओर गाँवों को बहुत कम मात्रा में पानी मिलता है इसलिये जल की आपूर्ति को संतुलित करने की आवश्यकता है।

हमारे देश के कई राज्यों में, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को मीलों दूर से पानी भर कर लाना होता है। बहुत जगहों पर पानी भरने को ले कर इतनी भीड़ होती है कि मारपीट व झगड़े तक नौबत आ जाती है। भारत के अंतरराज्यीय जल विवादों के बारे में तो कुछ बताने की आवश्यकता ही नहीं है। नेता लोग चाहे जब पानी को राजनीतिक हथियार के रूप में प्रयोग करने लगते हैं। इसी प्रकार भारत के पड़ोसी राज्य भी नदियों के पानी की भागीदारी पर यदाकदा आँख दिखाते रहते हैं।

– सर्वज्ञ शेखर

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