भूल न जाना होली की ठिठोली में

रंगों की उड़ेगी बौछारघूमेंगे हुरियारी टोली मेंअबीर गुलाल की होगी बहारहोली की मस्त ठिठोली मेंभीगेंगे पानी में हमसबरंग बरसेगा चोली में गले मिलना शिकवे मिटानाभूल न जानाहोली की ठिठोली में खूनी होली खेल रहेआतंकी पड़ोस से आ केशहीद हो रहे सपूत भारत माँ केछाती पर गोली खा केतोप चलाओ मिसाइल दागोकुछ नहीं रखा वार्ता बोली में लेना है भीषण बदला उनसेभूल न जानाहोली की ठिठोली में जो भी दीखे लाचारगरीब

हरि बोल, हरि, हरि हरि बोल

नारी शक्ति का पूज्य उपासकबेटियों का है रखता मान।नदियों को भी माँ मानतादेवियों का करता गुणगान।।माँ भारती को नमन करताराष्ट्रभाषा का करता सम्मान।हिंदी बिंदी भारत माँ कीऐसी संस्कृति का देता ज्ञान।।वीर शहीदों के रक्त से सिंचितआजादी का पुष्पित उद्यान।राष्ट्रवीरों को नमन करतामेरा प्यारा हिंदुस्तान।।सीमा पर खड़े हैं सैनिकबहादुरी से सीना खोल,हरि बोल, हरि, हरि हरि बोल। राष्ट्रद्रोही कुछ सक्रिय हो रहेरहना उनसे सावधान।संस्कृति, धर्म की रक्षा करनाहो अपना कर्तव्य महान।।व्यभिचारी,

संस्थान संगम की ऑनलाइन काव्यगोष्ठी

कोरोना के योद्धाओं को नमन, अभिनंदन,मजदूरों की दशा पर चिंता आगरा। साहित्यिक संस्था संस्थान संगम के तत्वावधान में ऑनलाइन ऑडियो कविगोष्ठी आयोजित की गई। गोष्ठी की अध्यक्षता कोटा के वरिष्ठ साहित्यकार रामेश्वर शर्मा रामू भैया ने की। मुख्य अतिथि थे दिल्ली के कर्नल प्रवीण त्रिपाठी। गोष्ठी में अमेरिका से डॉ शशि गुप्ता सहित बैंगलोर, कोटा, ग्वालियर, दिल्ली, मेरठ, भोपाल, आगरा के 50 से अधिक साहित्यकारों ने भाग लिया। गोष्ठी का

साधु-संतों की रक्षा करो सज्जनों को न दो संताप

संतों की निर्मम हत्या सेशोकमग्न है देश हमारा।नर नहीं नरपिशाच हैं वोसाधुओं को जिन्होंने मारा।हत्यारे और संरक्षक उनकेपाएँ सजा कठोर सभी,पुनरावृत्ति होने न पाएऐसी घटना की फिर कभी। अफवाहों को न फैलाओऔर न भरोसा करो उन पर,उत्तेजित, आक्रोशित न होनाइधर-उधर की बातें सुन कर।भीड़ हिंसा अपराध जघन्य हैनिरपराध की हत्या है पाप,साधु-संतों की रक्षा करोसज्जनों को न दो संताप। – सर्वज्ञ शेखर

सप्ताहांत: रहिमन विपदा हू भली, जो थोरे दिन होय

महाभारत का एक प्रसंग अनायास ही स्मृति पटल पर आ गया। महाभारत की प्रचलित कथाओं में से एक के अनुसार युद्ध खत्म होने के बाद श्री कृष्ण जब द्वारिका लौटने लगे तो भारी मन से पांडव अपने परिवार के साथ भगवान कृष्ण को नगर की सीमा तक विदा करने आए। सब की आँखों में आँसू थे। भगवान एक-एक करके अपने सभी स्नेहीजनों से मिल रहे थे। अंत में अपनी बुआ

अंतर्मन का दीप जलाओ

अंतर्मन के दीप जला करअज्ञानता का तम हरो,कोरोना से बचने को मित्रोनिर्देशों का मान करो।कोविड के जीवाणु काअंत करेगा बस विज्ञान,सामाजिक दूरी रखने परही बस देना अपना ध्यान।दीप जलाओ मानवता काभूखों को कुछ दे दो अन्न,सहायता का दीप जला करमजदूरों को करो प्रसन्न।दीप जलाओ अदब तहजीब काचिकित्सकों का करो सम्मान,दीप जलाओ अनुशासन काकरो न किसी का भी अपमान।दीप जला कर गोदामों मेंरोको कालाबाजारी को,बेईमानी करने से रोकोदीप दिखाओ व्यापारी को।कोरोना

नव वर्ष तुम आ तो रहे हो…

नव वर्ष तुम आ तो रहे होक्या क्या नया लाओगे संग,क्या बदलोगे दशा देश कीदे नई खुशियाँ और उमँग। बदलेगा पञ्चाङ्ग कलेंडरदिनांक आएगा बस नया,नया नहीं हुआ कुछ भी तोफिर कैसे नव वर्ष हो गया। चंदा सूरज वही रहेंगेतारों में वो ही टिमटिम,वही सुहाना मौसम होगावारिश होगी वही रिमझिम। पतझड़ होगा फूल खिलेंगेपुष्पित पल्लवित चमन रहेंगे,मधुमास की मादक मस्तीझूम-झूम भँवरे झूमेंगे। उसी दिशा में प्रवाहित होगीकलकल निनादिनी की धारा,मन्दिर मस्ज़िद

एक शाम अटल जी के नाम

प्रधान डाकघर प्रतापपुरा में साहित्य संगीत संगम द्वारा आयोजित कार्यक्रम की कुछ झलकियाँ। श्री सुशील सरित के कुशल संयोजन में सुविख्यात गजल गायक सुधीर नारायण ने अटल जी के गीतों की खूबसूरत प्रस्तुति दी।

बाल दिवस के अवसर पर विशेष: मेरे अंदर का बच्चा जागा

प्रत्येक व्यक्ति के अंदर एक बच्चा होता है, उसे यदि जाग्रत रखा जाए तो जीवन एक बच्चे की भांति निश्छल और सच्चा हो सकता है। इस अवसर पर एक रचना प्रस्तुत है – ??????? मेरे अंदर का बच्चा जागा ??????? घर से बाहर निकला ही थाएक छोटा बच्चा पास आया,नन्हे हाथों से रंग-बिरंगेगुब्बारों का झुंड दिखाया। कातरता से देखा मुझकोबोला हाथ पकड़ कर,गुब्बारे ले लो बाबू जीकरो कृपा मेरे ऊपर।