बाल दिवस के अवसर पर विशेष: मेरे अंदर का बच्चा जागा

प्रत्येक व्यक्ति के अंदर एक बच्चा होता है, उसे यदि जाग्रत रखा जाए तो जीवन एक बच्चे की भांति निश्छल और सच्चा हो सकता है।
इस अवसर पर एक रचना प्रस्तुत है –
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मेरे अंदर का बच्चा जागा
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घर से बाहर निकला ही था
एक छोटा बच्चा पास आया,
नन्हे हाथों से रंग-बिरंगे
गुब्बारों का झुंड दिखाया।
कातरता से देखा मुझको
बोला हाथ पकड़ कर,
गुब्बारे ले लो बाबू जी
करो कृपा मेरे ऊपर।
कुछ खा लूंगा भूख लगी है
पेट मेरा भर जाएगा,
प्रभू भरेगा जेब आपकी
खुशियों को बरसायेगा।
मेरे घर कोई नहीं है बच्चा
मैंने उसको समझाया,
क्या करूं ले कर गुब्बारे
कारण उसको सही बताया।
मेरी इन बातों को सुन कर
वह बेचारा हुआ निराश,
देखता रहा मुझे ध्यान से
खड़ा रहा मेरे ही पास।
मेरे अंदर का बच्चा जागा
और मुझे उपाय मिल गया,
खरीद लिए सारे गुब्बारे
चेहरा उसका खिल गया।
मंदिर के बाहर बच्चे थे
सब को बांट दिये गुब्बारे,
प्रसन्नता की लहर दौड़ गई
वह भी हो गए खुश सारे।
मेरे अंदर का बच्चा जागा
ग्रांड डॉटर जब मेरी आई
कूद कर चढ़ गई गोदी में,
और पकड़ ली मेरी टाई।
मुझे घुड़सवारी करनी है
दादू बन जाओ घोड़ा,
पहली बार कह रही हूँ
मेरा मन रखलो थोड़ा।
चढ़ गई वो मेरी पीठ पर
बूढ़ा घोड़ा तेजी से भागा,
मेरे अंदर का बच्चा जागा।
मेरे अंदर का बच्चा जागा।।
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– सर्वज्ञ शेखर