सप्ताहांत: आओ! हम बनाएं, सकारात्मक वातावरण

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लॉकडाउन में घरों में बंद रहने के कारण और कोरोना से संबंधित दुःखद खबरें देख-पढ़ कर ज्यादातर लोग अवसादग्रस्त हो रहे हैं। गुस्सा, चिड़चिड़ापन की शिकायतें आ रही हैं। ऐसी दशा में कुछ लोग आत्मघाती कदम भी उठा लेते हैं और अपने पूरे परिवार को तबाह कर लेते हैं। यह सब सकारात्मक वातावरण के अभाव में हो रहा है। यदि हम सकारात्मक वातावरण में रहें और सकारात्मक वातावरण न होने पर् उसका निर्माण कर् लें तो ऐसी दुखद घटनाओं को होने से रोका जा सकता है या कम किया जा सकता है।

माहौल का बहुत फर्क पडता है। जब हम किसी की शवयात्रा के दौरान शमशान घाट पर होते हैं तो संसार से विरक्ति, जीवन के प्रति निराशा के भाव मन में आने लगते हैं। यदि हम अस्पताल में किसी मरीज़ को देखने जाते हैं तो वहां का माहौल देख कर मन दुखी होने लगता है, ऐसा महसूस होता है जैसे संसार में दुख ही दुख है और कोई भी सुखी नहीं हैं| यदि हम जेल, कचहरी या अदालत में जाते हैं तो प्रतीत होता है कि दुनिया अपराधियों से भरी पडी है। ऐसे ही यदि हम किसी शादी समारोह में या किसी होटल में किसी कार्यक्रम में होते हैं तो सारे दुखों को भूल कर नाचने लगते हैं, ऐसा लगता है जैसे चारों ओर सुख ही सुख है। यह सब माहौल का ही असर होताहै।

सकारात्मक माहौल का कितना फर्क पडता है इसके अनेक उदाहरण हैं। हाथी और घोडी की कहानियाँ आपने पहले भी सुनी ही होंगीं, परंतु माहौल पर हो रही चर्चा के संदर्भ में वो प्रकरण समीचीन हैं और उनका यहाँ वर्णन प्रासंगिक ही होगा।

एक राजा की सेना का हाथी दलदल में गिर गय । बहुत कोशिश के उपरांत भी बाहर नहीं निकाला जा सका तो राज पंडित से उपाय करने को कहा गया। राजपंडित ने कहा “जैसे माहौल में हाथी रहता था वैसा ही माहौल बनाइये, देखिये हाथी तुरंत बाहर आ जायेगा।” ऐसा ही किया गया| चूंकि वह सेना का हाथी था, इस लिये युद्ध का माहौल बनाया गया। दुंदुभी बजाई गई, ढोल नगाडे वाले बुलाये, सैनिकों की पद्चाल कराई गई। हाथी को लगा कि युद्ध होने वाला है, सैनिक आ रहे हैं, सेनापति मेरा इंतज़ार कर रहे होंगे। उसमें अतिरिक्त जोश का संचार हो गया। उसने बाहर आने के लिये अपनी ओर से भी जोर लगाया और बाहर आ गया।

घोडी वाला प्रकरण भी व्यंग्य के रूप में काफी प्रचलित है कि ताँगेवाला घोडी के आगे थोडी थोडी देर बाद नाचता था तभी वो आगे चलती थी। ताँगे वाले से जब इसका कारण पूछा गया तो बोला कि ये बारात के दूल्हे की घोडी है, इसके सामने बारात का माहौल बनाना पड्ता है, तभी यह चलती है,आगे बढ़ती है। यद्यपि यह व्यंग्य है, परंतु इसमें जो संदेश छिपा है वो यही है कि माहौल का बहुत ज्यादा असर होता है।

अपना भी एक उदाहरण है, जो अनुभूत है।बैंक की परीक्षा में जो लोग टॉप करते थे उनका बड़ा नाम होता था, बैंक की पत्रिका में उनके साक्षात्कार छपते थे, चारों ओर से प्रशंसा की बारिश होती थी, अब भी ऐसा ही होता है। मेरे मन में भी इच्छा जागृत हुई कि मुझे भी टॉप करना है। तो मैंने क्या किया कि अपने स्टडी रूम में चारों ओर अंग्रेजी का T बड़ा-बड़ा लिख कर चिपका दिया। इसका बहुत असर हुआ।

पुराने परिवारों में अभी भी गर्भवती महिलाओं के कमरे में लड्डू गोपाल, रामलला, देवी, दुर्गा के चित्र लगाए जाते हैं ताकि गर्भस्थ बच्चे का चरित्र दुर्गा या राम, कृष्ण जैसा हो।

इन सभी उदाहरणों से स्पष्ट है कि सकारात्मक वातावरण तो बनाना होता है, यह आपके ऊपर है कि आप को क्या पसंद है, आप संगीत सुनें, हंसी मजाक वाले सीरियल देखें, बिना बात के हंसें, ताली बजाएं, कोई धार्मिक पाठ करें या अच्छी पुस्तकें पढ़ें।

सर्वज्ञ शेखर

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