सप्ताहांत: क्वारंटाइन हमारे लिए नई अवधारणा नहीं है

quarantine coronavirus covid

कई वर्ष पूर्व की बात है। मैंने अपने मित्र के साथ माता वैष्णोदेवी के दर्शन का कार्यक्रम बनाया। सही समय पर रेलवे स्टेशन पहुँच गए, पता लगा ट्रेन 15 मिनिट लेट है। थोड़ी देर में घोषणा हुई कि आधा घण्टा, फिर 2 घण्टे और धीरे-धीरे करके ट्रेन 18 घण्टे देरी से आई। रेलवे वाले इस चतुराई के लिए जाने जाते हैं कि वो कभी कभी ट्रेन की देरी की सूचना एक साथ नहीं देते, ताकि यात्री टिकिट कैंसिल नहीं कराएं या घर वापस न चले जाएं। हम भी जब तक ट्रेन नहीं आई, स्टेशन पर ही बैठे रहे, धार्मिक यात्रा थी इसलिए दृढ़ प्रतिज्ञ थे कि चाहे कितनी देरी हो जाए, जाएंगे जरूर।

कोरोना महामारी से बचने, बचाने के लिए लॉकडाउन का जो वातावरण चल रहा है वह ट्रेन की देरी और यात्रियों की यात्रा करने की दृढ़ प्रतिज्ञा जैसी ही है।19 मार्च को सुबह जब यह समाचार आया कि प्रधानमंत्री जी शाम को 8 बजे राष्ट्र को संबोधित करेंगे, तभी एक संदेश सोशल मीडिया पर आया कि प्रधानमंत्री जी लॉकडाउन की घोषणा करेंगे। एक संदेश यह भी बड़ी तेजी से फैला कि who ने जून तक लॉकडाउन के लिए भारत सरकार से कहा है। यह कोई अफवाह नहीं थी, पुष्ट सूत्रों से संदेश आ रहे थे। यही कारण था कि PMO को इस बात का खंडन करना पड़ा कि प्रधानमंत्री किसी लॉकडाउन की घोषणा करेंगे। शाम को प्रधानमंत्री ने केवल एक दिन अर्थात 22 मार्च के जनता कर्फ्यू की अपील की। मुझे लगता है कि चूंकि न्यूज़ किसी प्रकार लीक हो गई थी इसलिए उस दिन केवल एक दिन का जनता कर्फ्यू लगाया गया जबकि संकेतों में कई हफ़्तों की बात कह दी गई थी। इसके बाद 22 मार्च से 25, फिर 25 से 31 मार्च और बाद में 21 दिनों के लिए अर्थात 14 अप्रैल तक के लिए पूरे देश में लॉकडाउन घोषित हो गया। यह ऐसे ही हुआ जैसे धीरे-धीरे ट्रेन के लेट होने की घोषणा होती है। अब भी यही कहा जा रहा है कि जिस प्रकार वित्तमंत्री महोदया ने राहत योजनाओं की घोषणा 3 महीने के लिए की, बाद में RBI ने EMI भी 3 महीने के लिए आगे बढ़ाने की घोषणा की, तो हो सकता है कि लॉकडाउन भी आगे और बढ़े।

तेजी से बढ़ती कोविड19 महामारी को रोकने के लिए लॉकडाउन के अलावा और इससे अच्छा विकल्प भारत सरकार के पास कोई और था भी नहीं। सम्पूर्ण विपक्ष ने भी इस घोषणा का व बाद में राहत योजनाओं का स्वागत किया है। असुविधाएं तो बहुत लोगों को हुई हैं और आगे भी होंगी, परन्तु उनका निराकरण करने का प्रयास शासन, प्रशासन व गैर सरकारी संगठनों द्वारा किया जा रहा है।

क्वारन्टईन अर्थात आइसोलेशन अर्थात अलग थलग हो जाना। 17 वी शताब्दी में इटली में आने वाले समुद्री जहाजों को 40 दिन तक एकांत में छोड़ दिया जाता था। इटैलियन में 40 को Quaranta कहते हैं, तभी से क्वारन्टईन शब्द की शुरूआत हो गई । अब इसे बीमारी फैलने से रोकने के लिए मनुष्यों या पशुओं को अलग रखने के लिए प्रयोग किया जाता है।

परंतु क्वारंटाइन हमारे देश के लिए नई अवधारणा नहीं है। बीमारी छोटी हो या बड़ी या महामारी हो, भारत में तो शुरू से ही क्वारन्टीन अर्थात एकांतवास और सोशल डिस्टेंसिग या आपसी दूरी बनाए रखने का नियम है। हमें ध्यान है जब बच्चों को चेचक निकलती थी, जिसे माता की बीमारी कहते थे, तब उन बच्चों को अलग सुलाया जाता था और कमरे के बाहर नीम की पत्ती की डाली लगा दी जाती थी जो इस बात का प्रतीक होती थी कि उस कमरे में मरीज है, कोई अंदर न जाए, नीम वैसे भी बीमारी को आगे बढ़ने से रोकने का काम करती थी। जो भी दोस्त मिलने आते थे, उन्हें बाहर से ही भगा दिया जाता था। माँ या दादी मरीज के पास हाथ पैर धो कर जाती दवा देने के लिए और बाहर आ कर फिर हाथ पैर धोती थी। यहाँ तक कि युवकों को बुखार टायफाइड होने पर भी सबसे दूर रहने की हिदायत दी जाती थी और पिताजी बीमार की पत्नी को सबसे पहले मायके भेज देते थे, “बहू जा पीहर होया बहुत दिनों से नाय गई, जे ठीक है जावे तब आ जइयो, जाकी देखभाल तो हम कललेंगे।” यह थी सोशल डिस्टेंसिंग। आँखों के फ्लू में भी दूर-दूर ही रहते थे, एक दूसरे की ओर भी नहीं देखते थे। माता-बहनों को भी कुछ दिनों एकांतवास व सोशल डिस्टेंसिंग में रहना होता था। अब तो खैर ऐसा नहीं है।

ऐसे ही जन्म मृत्यु के समय सूतक की प्रथा भी क्वारन्टीन और सोशल डिस्टेंसिंग का ही उदाहरण है। मृत्यु के उपरांत 13 दिनों तक परिजनों का घर से बाहर न निकलना भी ऐसा ही है।

इन सबके मूल में स्वच्छता, बीमारियों को बढ़ने से रोकना ही है। यही हमलोग अभी भी कर रहे हैं। अमेरिका में कोरोना पीड़ितों की संख्या एक लाख पार हो गई है। लॉकडाउन के बावजूद भारत में भी यह सँख्या एक हज़ार छूने वाली है, मृतकों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है। एक आदमी की लापरवाही सैंकडों लोगों को बीमार कर रही है। कहाँ से आएंगे इतने बिस्तर, डॉक्टर और अस्पताल। होटलों, शादीगृहों, जेलों को अस्पताल बनाया जा रहा है। रेल की बोगियों तक को क्वारन्टीन रूम में बदलने की तैयारी हो रही है।

एक बार फिर आप सभी से अपील है कि अपने घरों में रहें, खुद को स्वस्थ रखें, दूसरों को स्वस्थ रखें।

– सर्वज्ञ शेखर

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