सप्ताहांत: नज़रिया अपना-अपना

coronavirus positivity

बात है तो बहुत पुरानी, सन 1981 में, मैंने अपनी पत्नी और छोटे बच्चे के साथ माता वैष्णो देवी और जम्मू कश्मीर की यात्रा की। जब हम जम्मू से श्रीनगर जा रहे थे तो अचानक रास्ते में बहुत काली घटा छाई, बारिश होने लगी, बिजली कड़कने लगी और दिन में अंधेरा छा गया। हम लोग बहुत डर गए, और बेटा बहुत छोटा था, सर्दी के कारण उसकी भी नाक नीली हो गई। हमें डर लगने लगा कि अभी रास्ते में ही यह हाल है तो श्रीनगर तक पहुंचेंगे तो क्या हाल होगा। जिस बस में हम यात्रा कर रहे थे उसी में कुछ छात्र पीछे बैठे हुए थे वह भी कश्मीर की यात्रा करने आए थे, वो ऐसे मौसम को देखकर खुशी से चिल्ला रहे थे-कितना मौसम है कितना सुहाना मौसम है how pleasant the weather is. हालांकि यह घटना लगभग 40 साल पुरानी है लेकिन इस घटना को उद्धृत करने का उद्देश्य आजकल के वातावरण में समीचीन है।

हम किस घटना को या किसी बात को किस रूप में लेते हैं, किस दृष्टि से देखते हैं, यह समय काल वातावरण और मनोवृत्ति पर निर्भर करता है। हमें इस तरह के वातावरण में रहने का अनुभव नहीं था तो हमें डर लगने लगा लेकिन जो बच्चे या जो अन्य यात्री कश्मीर की इसी खूबसूरत सीनरी को देखने आए थे उनके लिए बहुत सुहावना मौसम था। जैसे की पुरानी कहावत है कि जब बरसात होती है तो किसान खुश होता है और कुम्हार दुखी हो जाता है। गिलास को आधा भरा और आधा खाली देखने वाली उक्ति तो अब बहुत पुरानी हो गई। अब तो ऐसे जादू के गिलास आने लगे हैं तो कि वह भरे हुए भी खाली दिखते हैं, भरे गिलास को भी जादूगर उलट देता है तब भी वह खाली दिखता है और खाली गिलास में से वह पूरे एक गिलास भर के पानी निकाल देता है।

आजकल भी ऐसा ही हो रहा है। जो दिख रहा है वह सही है या नहीं इसका आकलन करना बहुत मुश्किल होता जा रहा है। समाचारों को, जानकारियों को जिस तरह से प्रस्तुत किया जा रहा है वह संदेहास्पद है। मुझे याद है जब मैं आगरा में स्वराज्य टाइम्स में सह संपादक था तो एक बार पुलिस ने 100 छात्रों को आंदोलन करते हुए गिरफ्तार किया। उनमें से 90 छात्रों को छोड़ दिया। मैंने समाचार पत्र में जो न्यूज़ बनाई उसका शीर्षक लगाया 10 छात्र अभी भी बंदी तो हमारे संस्थापक संपादक आदरणीय आनंद शर्मा जी ने कहा, इसमें हैडिंग लगाओ “90 छात्र रिहा” उन्होंने कहा कि रिहा होने का एक सकारात्मक असर पड़ेगा।वैसे ही मामला तनावपूर्ण है, छात्र उग्र हैं। यदि छात्रों की बंदी की बात को प्रमुखता देंगे तो वातावरण और खराब हो सकता है। इसलिए जो 90 छात्र रिहा हुए हैं उसको प्रमुखता से दो। हुआ भी ऐसा ही। दूसरे दिन अन्य समाचार पत्रों में जो समाचार छपा उसमें “10 छात्र अभी भी बंदी” यह शीर्षक था जबकि हमारे समाचार पत्र में “90 छात्र पुलिस ने रिहा किए” यह “शीर्षक प्रमुखता से दिया गया था।

लॉकडाउन के दौरान तो सकारात्मक समाचार आते थे, परंतु आजकल अनलॉक वन के समय में जो समाचार आ रहे हैं, सरकारी माध्यमों से या न्यूज़ चैनलों में, या विभिन्न समाचार पत्रों में, वह पूर्वाग्रह युक्त या यूं कहें कि कहीं कहीं दुराग्रह पूर्ण भी हैं। किसी चैनल ने मुंबई को पकड़ रखा है तो किसी चैनल ने दिल्ली को। सरकारी माध्यम भी दिल्ली में मृतकों और पीड़ितों के आंकड़े कुछ बताते हैं तो प्रदेश सरकार कुछ और बताती है। यही हाल मुंबई में और पश्चिम बंगाल में भी हो रहा है। अन्य राज्यों में भी कमोवेश यही स्थिति है। आगरा में भी यही स्थिति है। चारों ओर हाहाकार मचा हुआ है परंतु आंकड़े कुछ और ही कहानी कहते हैं। कोरोना के संक्रमण से हो रही मौत और संक्रमण पीड़ितों पर भी राजनीति का ऐसा जादू चल गया है कि उसको भी लोग अपने चश्मे से देख रहे हैं। ऐसे वातावरण में सच्चाई क्या है वह सामने आना बड़ा मुश्किल हो रहा है। ऐसा ही नेपाल सीमा और चीन सीमा की स्थिति पर भी हो रहा है। कभी समाचार आता है कि चीनी सैनिक पीछे हट गए तो कभी आता है अभी बातचीत चल रही है। चीनी सैनिक पीछे हटे हैं तो इसका मतलब है आगे भी आये ही होंगे।

भ्रम और संशय की स्थिति तभी पैदा होती है जब अधिकृत तौर पर जो आंकड़े दिए जाते हैं उनमें और जो गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा जारी किये जाते हैं उन आंकड़ों में अंतर होता है। थोड़ा बहुत अंतर चलता है लेकिन जब यह अंतर ऐसा लगने लगता है कि जानबूझकर कुछ छिपाया जा रहा है तब बहुत दुख होता है। आंकड़ेबाजी के इस खेल को समाप्त करना चाहिए, और जनता के सामने जो भी वास्तविक स्थिति है उसको सामने लाना चाहिए ताकि कोरोना के सामुदायिक संक्रमण को रोका जा सके। जैसा कि आशंका प्रकट की जा रही है, अगले 2 माह में यह पीक पर आने वाला है तो उससे होने वाली संभावित हानि से बचा जा सके।

– सर्वज्ञ शेखर

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