मेरी माँ

अपनी माँ के श्री चरणों में
अभी भी जब बैठ जाता हूँ
साठ साल पार हो गए पर
खुद को बचपन में पाता हूँ

झुर्रियों वाले कांपते हाथ
जब फेरती हैं सर पर मेरे
और सहलाती पीठ को
दुलार से माँ धीरे धीरे

जन्नत में भी नही मिल सकता
ऐसा सुख अपरम्पार
कोई परेशानी नही तो बेटा
जब पूछतीं हैं बार बार

मैं ठीक हूँ, कितना भी कह दूं
नही मानती है वो कभी
तेरी माँ हूँ सब जानती हूँ
बता क्या दिक्कत है अभी

हर पूजा अनुष्ठान में करे
ईश्वर से बस प्रार्थना एक
मेरे बच्चों को कुछ ना होवे
मुझको दो चाहे दुःख अनेक

ना चाहिए कोई डाक्टर
ना हो वैद्य की कोई दवा
सदैव रहे निरोगी काया
माँ की हो जब साथ दुआ

इतना बड़ा हो गया मैं
फिर भी हिदायतें देती ऐसी
सड़क पर चलना जरा ध्यान से
झगड़े में नही पड़ना किसी

मैं जब भी बाहर जाता
रोज दो बार फोन मिलाया
खुद भोजन करती बाद में
पूछे पहले तूने क्या खाया

अग्रसर शतकीय वय है
जीवन संध्या का आभास
मेरे बाद क्या क्या करना है
बताती बिठा के अपने पास

न चल पाए आराम से
ना अच्छी है याददाश्त
पर ताकत है मेरे लिये
हिम्मत वाली करती बात

रोम रोम में दर्द भरा है
पीड़ा से कराहे दिन और रात
पर हमेशा ये ही कहती
बेटा नही चिंता की बात

जब तू मेरे सामने आता
मेरा बुढापा हो जाता दूर
याद आ जाता बचपन तेरा
आ पुचकारूं तुझको भरपूर

ममता की छांव बनाये रखना
वात्सल्य पिपासा अतृप्त है माँ
नेह भरे असीम सागर से
अमृत छलकाती रहना माँ

नमन नमन माँ मेरी माँ
नमन नमन माँ सबकी माँ

– सर्वज्ञ शेखर

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