सप्ताहान्त

यह बड़ा आश्चर्यजनक सा लगने लगा है कि रामलला के मंदिर की नाव पर चुनावों की वैतरणी पार करने वाले लोग रामलला से दूरी बनाए हुए हैं, यहां तक कि उनका नाम भी नही ले रहे। इनमें सत्ता और विपक्ष दोनों दलों के राष्ट्रीय नेता शामिल हैं।

पीएम मोदी की रैली 1 मई को अंबेडकरनगर और फैजाबाद बोर्डर पर हुई थी। पीएम मोदी की रैली स्थल दोनों संसदीय क्षेत्रों को ध्यान में रखते हुए तय की गई थी। पीएम मोदी की रैली स्थल से राम जन्मभूमि से ज्यादा दूर भी नहीं थी। परन्तु वह रामलला के दर्शन को नही गए। राहुल गांधी साल 2017 में यूपी विधानसभा के दौरान अयोध्या आए थे और हनुमानगढ़ी भी गए थे, प्रियंका गांधी भी इस महीने के शुरुआत में ही अयोध्या आईं थीं। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने भी श्रीरामलला से दूरी बनाई थी।

इसको लेकर तर्क यह दिया गया था क्योंकि मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है इसलिए वह अस्थाई राम मंदिर में नहीं जाएंगे। ऐसा माना जा रहा है कि देश में इस समय चुनाव का माहौल है और सुप्रीम कोर्ट में यह मामला विचाराधीन भी है इसलिए मोदी भी वहां जाने से बचे।

हालांकि इस बीच उन्होंने पिछले दिनों हुए गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान राम मंदिर का ज़िक्र ज़रूर किया था। एक चुनावी जनसभा में उन्होंने कहा कि कांग्रेस के नेता कपिल सिब्बल अयोध्या में राम मंदिर मामले की सुनवाई को अगले चुनाव तक टालने की सुप्रीम कोर्ट से क्यों मांग कर रहे हैं। नरेंद्र मोदी अयोध्या एक विजेता के रूप में जाना चाहते हैं। पूरी उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट से राम जन्म भूमि और विवादित ढांचे का कोई न कोई फ़ैसला ज़रूर आ जाएगा। यदि हाई कोर्ट के फ़ैसले के आधार पर ही सुप्रीम कोर्ट का भी फ़ैसला आता है तो ज़ाहिर है ये हिंदुओं के पक्ष में होगा क्योंकि हाई कोर्ट भी दो तिहाई ज़मीन हिंदू पक्ष को सौंप ही चुका है। ऐसा फ़ैसला आने के बाद यदि नरेंद्र मोदी अयोध्या जाते हैं तो ज़ाहिर है, फ़ैसला भले ही कोर्ट का हो, क्रेडिट मोदी जी लेने की पूरी कोशिश करेंगे।

अयोध्या की इस कथित उपेक्षा की चर्चा बीजेपी नेताओं, आरएसएस के आनुषंगिक संगठनों, आस्थावान हिंदुओं के बीच होती है, जो बीजेपी को एक तरह से “राम मंदिर समर्थक पार्टी” के तौर पर देखते हैं । लोग कहते हैं, “नरेंद्र मोदी कट्टर हिंदुओं को अपने हिंदू हृदय सम्राट होने का प्रमाण पत्र गुजरात में दे चुके हैं”, “यही कारण है कि अयोध्या की चर्चा कभी ख़ुद न करने और देवालय से पहले शौचालय बनाने की बात करने के बावजूद हिंदुओं का ये वर्ग उनके ख़िलाफ़ आक्रामक नहीं हो पाया। उसे पता है कि ये सब चुनावी सभाओं की विवशता हो सकती है लेकिन मोदी जी हिंदुओं के हितैषी हैं। इसमें वो संदेह की गुंज़ाइश फ़िलहाल नहीं देखता.” नरेंद्र मोदी ख़ुद भले ही अयोध्या न आएं या अयोध्या की चर्चा न करें, लेकिन ऐसा नहीं है कि ये उनके एजेंडे में नहीं है।

जानकारों का ये भी कहना है कि राम मंदिर का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में होने के चलते प्रधानमंत्री जानबूझकर उसकी चर्चा नहीं करते ताकि उन पर किसी तरह के सवाल न उठें। दूसरा ये भी कि राष्ट्रीय राजनीति में आने के बाद वो लगातार अपनी उस छवि से बाहर आने की कोशिश करते रहे हैं जो गुजरात में मुख्यमंत्री रहते उनकी बनी थी। यानी, अब वे ‘विकास पुरुष’ की छवि में ही रहना चाहते हैं। प्रधानमंत्री के अयोध्या न जाने के पीछे जो भी वजह या मजबूरियां हों लेकिन कुछ हिंदूवादी संगठनों के लोगों से बात करने पर ऐसा लगता है कि मोदी की अयोध्या से ये ‘बेरुख़ी’ उन्हें न सिर्फ़ हैरान करती है, बल्कि इस बात से उनके भीतर एक क्षोभ भी है।
कुछ लोग तो सीधे तौर पर प्रधानमंत्री पर ‘छवि सुधारने की कोशिश’ का आरोप लगाते हैं लेकिन कुछ बचाव करते भी नज़र आते हैं।

निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि चाहे प्रधानमंत्री हों या अन्य नेता, रामलता से दूरी के मुख्य कारण तीन हैं…

  1. राम मंदिर मामला फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में है। अत: नेताओ ने रामलला से दूरी बनाने का फैसला किया है।
  2. जो नेता लंबे समय से अपनी छवि धर्म निरपेक्ष नेता के रूप में स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं। राम मंदिर जाने से मुस्लिम वर्ग पार्टियों से दूरी बना सकता है।
  3. नेताओं को इस बात का भी डर सता रहा है कि मामला सुप्रीम कोर्ट में हैं। अगर वह रामलला जाते हैं तो इस पर बवाल मत सकता है। चुनाव आयोग भी इस मामले पर एक्शन ले सकता है। इसी डर से प्रियंका गांधी भी रामलला के दर्शन के लिए नहीं गई थीं। हालांकि उन्होंने हनुमानगढ़ी में माथा जरूर टेका था।

-सर्वज्ञ

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