सप्ताहांत – 112 वें हस्ताक्षर

Handwriting

एक पुराना प्रसंग है, परन्तु आजकल प्रासंगिक है। एक युवक ने किसी कम्पनी में भर्ती के लिए आवेदन किया। पहले आवेदन हस्तलिखित ही स्वीकार किए जाते थे। कहा जाता है कि हस्तलिपि की सूक्ष्म पड़ताल से ही आवेदक के बारे में बहुत कुछ पता लग जाता था। तो वह युवक जब आवेदनपत्र ले कर कम्पनी के अधिकारी के पास पहुंचा तो अधिकारी महोदय ने किसी कारणवश क्रोध में उसका आवेदन फाड़ कर फेंक दिया और कह दिया जाओ तुम्हें नौकरी नहीं मिलेगी। बाद में जब अधिकारी महोदय का गुस्सा शांत हुआ तो ठंडे दिमाग से उन्होंने सोचा कि बेचारे युवक पर नाहक गुस्सा किया। उन्होंने उसके फटे हुए आवेदन पत्र को ढूंढ कर उसका नाम पता आदि देखा और अपने ही हाथ से आवेदन लिख कर चयन समिति को भेज दिया। चयन समिति ने सभी आवेदनों की हस्तलिपि और उनकी भाषा की जांच की और अपनी रिपोर्ट उन अधिकारी महोदय के समक्ष रखी। चूंकि वह उस युवक से जाने अनजाने में भावनात्मक रूप से जुड़ चुके थे, उसकी रिपोर्ट पर उन्होंने गौर किया। रिपोर्ट में टिप्पणी थी कि यह आवेदक पद हेतु उपयुक्त नहीं है। इसकी हस्तलिपि व भाषा की पड़ताल से यह बेईमान, दुर्व्यसनी, मक्कार और कामचोर प्रतीत होता है। अधिकारी महोदय ने रिपोर्ट पढ़ कर अपना माथा पकड़ लिया क्योंकि उस आवेदन पर तो हस्तलिपि उन की ही थी।

तात्पर्य यह है कि लिखने का ढंग, लहजा, शब्दों का चयन सभी लेखक के व्यक्तित्व को परिभाषित कर देते हैं। कुछ भविष्यवक्ता भी बिना लाइन वाले कागज पर कुछ लिखने व हस्ताक्षर करने के लिऐ कहते हैं। पंक्तियाँ ऊपर की ओर जा रहीं हैं या नीचे की ओर या सपाट सीधी लिखी हैं, शब्दों के अक्षर मिला कर लिखे हैं या टूटे फूटे, हस्ताक्षर के नीचे लाइन खींची है या बिंदु लगाया है, हस्ताक्षर घुमावदार हैं या साफ साफ लिखे हैं, यह सब लेखक की मनोदशा और उसके मानसिक स्तर,उसकी पृष्ठभूमि की काफी हद तक जानकारी दे देता है। मैं इस कला में पारंगत तो नहीं हूँ, परन्तु अक्सर अपने साथियों का इस प्रकार से भविष्य बता कर मनोरंजन अवश्य करता रहा हूँ। एक बार एक अधिकारी के पास बेनामी शिकायत आई। उन्होंने मुझे बुला कर वह शिकायती पत्र दिखाया। मैंने उसे पढ़ते ही बता दिया कि इस शिकायत को करने वाला कौन है।

आजकल देश में जो बड़ी बहस चल रही है उसकी ओर आपका ध्यान आकृष्ट करने के लिए इतनी बड़ी भूमिका बनानी पड़ी। देश के 111तथाकथित बुद्धिजीवियों ने चिठ्ठियां लिख कर लहर पैदा करने की कोशिश की है। पहले 49 लोगों ने असहिष्णुता, भीड़ हिंसा और जयश्रीराम के नारे से उकसावे की बात की तो बाद में 62 लोगों ने उसका जवाब दिया। परन्तु इन 111 लोगों द्वारा लिखीं गईं दोनों चिठ्ठियों की जो भाषा है और लहजा है उससे साफ दिखाई दे रहा है कि स्क्रिप्ट किसी और की लिखी हुई है और हस्ताक्षर किसी और के हैं। हो सकता है कि जब आप इन पँक्तियों को पढ़ रहे हों तब तक कोई तीसरी चिठ्ठी भी आ जाए। उसे भी पढ़ते ही आप समझ जाएंगे कि उसके पीछे कौन हैं।

हमारी तो बस एक ही इच्छा है कि चाहे 111 या 222 लोग कुछ भी लिखें, एक दूसरे को कुछ भी जवाब दें पर कम से कम भगवान राम को बीच में न घसीटें। राम नाम की महिमा अपरम्पार है, इस विषय पर बड़े बड़े ग्रन्थ लिखे जा चुके हैं।जय श्रीराम का नारा लगाने वालों से आग्रह है कि ऐसी जगह यह उद्घोष न करें जहां भगवान श्रीराम का निरादर हो। विरोधियों से भी निवेदन कि जयश्रीराम के नारे का सम्मान करें। राम का नाम बदनाम न करो। इस निवेदन पर केवल मेरे हस्ताक्षर हैं, 112 वें।

– सर्वज्ञ शेखर

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