चाँद और चाँद की आदतें

यह आत्म मुग्धता नहीं, केवल विषयक आवश्यकता के कारण ही उध्दृत कर रहा हूँ। मुझसे प्रायः मेरे वरिष्ठ अधिकारी पूछा करते थे, तुम तनाव में भी इतना कैसे मुस्करा लेते हो,चेहरे पर चमक बनाये रखते हो। मैं उत्तर देता था,मैं चांद की भांति हूँ । चांद में अपनी कोई चमक नहीं होती वरन वह सूर्य से प्रकाश ले कर चमकता है। इसी प्रकार मैं आप(अधिकारियों) की खुशी से खुश रहता हूँ। यह सुन कर एक वरिष्ठ अधिकारी बहुत खुश हुए और मेरे उत्तर की तारीफ की।

चाँद की यही खासियत है। यह सभी को प्रिय है ।प्रेमियों को काली घटाओं के बीच से झांकता चाँद ऐसा प्रतीत होता है जैसे घने काले केशों के बीच शर्माती लजाती प्रियतमा का धवल मुखमंडल। इसकी शीतलता विरह वेदना को शांत करती है,गम गलत करती है, प्रेमियों को रोमांचित करती है, तन्हाई को दूर करती है, कवियों और शायरों को शब्द देती है। धर्मनिरपेक्ष भाव दर्शाते हुए इसकी किरणें किसी भी जाति धर्म वर्ग वर्ण सम्प्रदाय का भेद किये बिना सभी के आंगन को समान रूप से प्रकाशित करती हैं। चाँद की जितनी प्रतीक्षा करवाचौथ पर होती है, उतनी ही ईद पर इसके दीद के लोग दीवाने रहते हैं।

रामधारी सिंह दिनकर चाँद के बचपन में हठ करने की कहानी सुनाते हैं तो जावेद अख्तर चाँद को चूमने की ख्वाहिश करते हुए कहते हैं…

“उस माथे को चूमे कितने दिन बीते
जिस माथे की खातिर था एक टिका चाँद।”

रघुवीर सहाय चाँद की आदतों के रूप में उसके विभिन्न रूपों को इस प्रकार दर्शाते हैं..

दूसरी यह,
नीम की सूखी टहनियों से लटककर
टँगा रहता है (अजब चिमगादड़ी आदत !)

चाँद की
कुछ आदतें हैं
एक तो वह पूर्णिमा के दिन
बड़ा-सा निकल आता है
बड़ा नकली (असल शायद वही हो)।

तथा यह तीसरी भी
बहुत उम्दा है
कि मस्जिद की मीनारों और गुंबद की पिछाड़ी से
ज़रा मुड़िया उठाकर मुँह बिराता है हमें !

यह चाँद !
इसकी आदतें कब ठीक होंगी ?

चाँद भले ही छोटा लगता है परन्तु यह विषय बहुत व्यापक है। चाँद की महिमा का बखान करते हुऐ साहित्य कोष प्रचुर हुआ है। यदि इसके वैज्ञानिक-अंतरिक्ष विज्ञान के पहलुओं की चर्चा की जाए तो बहुत बड़े बड़े अनेक ग्रन्थ लिखे जा सकते हैं।

सर्वज्ञ शेखर

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