एक नीरस बजट

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ऐसा लग नहीं रहा था कि पूर्णकालिक पहली वित्तमंत्री के रूप में निर्मला सीतारमण का बजट इतना नीरस होगा। भाजपा अभी सत्ता में आई है, अतः उसे लोकलुभावन बजट पेश करने की कोई जरूरत भी नहीं थी। ऐसे में अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए कुछ कड़े कदम उठाये जा सकते थे। परन्तु न तो ज्यादा कठोरता कहीं दिखी और न किसी पर रहम किया। बड़ा ढीला ढाला सा लगा। कहीं कोई उत्साह नहीं, उमंग नहीं, खुशी नहीं।

किसानों और गांवों को छोड़ कर किसी के लिए भी कुछ नहीं किया गया लगता है। ‘नारी तू कल्याणी’ के नाम पर महिलाओं की योजनाओं का जो ढिढोरा पीटा जा रहा है वह भी गलत है। जनधन और स्वयं सहायता समूह की पुरानी योजनाओं में ही लाभ की राशि बढ़ाई गई है । सभी जानते हैं कि जनधन खातों और स्वयं सहायता समूहों का क्या हश्र हो रहा है।

मध्यम वर्ग, आयकरदाता, वेतनभोगी, पेंशनर्स आदि सभी के लिये बजट में कुछ नहीं है। सेस बढ़ाने से पेट्रोल डीजल के भाव बढ़ेंगे, फलतः महंगाई बढ़ेगी और मुद्रा स्फीति भी। मुँह फाड़ती बेरोजगारी समस्या दूर करने के लिये और नए रोजगार सृजन के लिए कोई ठोस योजना नहीं घोषित की गई है।

बजट भाषण में उन्होंने एक नई अवधारणा ‘ब्लू इकोनॉमी’ का जिक्र किया। उन्होंने कहा देश की अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के लिए इस बार मोदी सरकार इस पर जोर देगी। भारत के कुल व्यापार का तकरीबन 90 फीसदी हिस्सा समुद्री मार्ग से ही होता है। ऐसे में ब्लू इकोनॉमी न केवल भारत के लिए सामरिक बल्कि आर्थिक लिहाज से बेहद फायदेमंद हो सकती है। ब्लू इकोनॉमी के तहत समुद्र भी साफ-सुथरा रखा जाएगा ताकि बड़े पैमाने पर समुद्र से उत्पादन हो। ब्लू इकोनॉमी के तहत अभी मुख्य फोकस खनिज पदार्थों समेत समुद्री उत्पादों पर है। ब्लू इकोनॉमी का कॉन्सेप्ट कहीं ज्यादा व्यापक है और इसमें समुद्री गतिविधियां भी शामिल हैं। पर यह इतना आसान भी नहीं है, जैसे कहा गया है। इसमें समय भी बहुत लगेगा,निकट भविष्य में अमलीजामा की कोई संभावना नजर नहीं आती।

वैसे भी ज्यादातर योजनाओं के लक्ष्य आजादी की 75 वीं वर्षगांठ 2022 के लिए निर्धारित किए गए हैं। तब तक इस सरकार का चौथा साल भी शुरू हो जाएगा । तभी किसी मनमोहक और लोकलुभावन बजट की उम्मीद की जा सकती है।

– सर्वज्ञ शेखर

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