“हम भारत के लोग”

republic day india

हम भारत के लोग, वैसे तो एक बहुत ही साधारण वाक्य है लेकिन जब इस वाक्य को भारत के संविधान की प्रस्तावना के साथ पढ़ा जाता है तो छाती गर्व से फूल जाती है, मस्तक गर्व से उन्नत हो जाता है। 26 नवंबर 1949 को स्वीकृत व आज ही के दिन 1950 से लागू हमारे संविधान की प्रस्तावना में कहा गया है –

हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ई0 (मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, सम्वत् दो हजार छह विक्रमी) को एतदद्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।

विश्व के सबसे बड़े हस्तलिखित संविधान की यह प्रस्तावना भारतीय लोकतंत्र की पवित्र आत्मा है। संविधान सभा के सदस्य व संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले बाबा साहब आंबेडकर ने विधिमंत्री के रूप में अपने प्रथम साक्षात्कार में कहा था ” यह अच्छा संविधान हो सकता है, परँतु जो लोग इसे लागू कर रहे हैं वे अच्छे नहीं हैं, तो यह बुरा साबित होगा। यह बुरा संविधान हो सकता है, पर इसे लागू करने वाले लोग अच्छे हैं तो यह अच्छा साबित होगा।” संविधान के प्रति बाबा साहब की यह बेबाक राय आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी उस समय थी। ऐसा लगता है कि उन्होनें भारत के भविष्य की राजनीति व राजनेताओं के बारे में कल्पना कर ली थी।

यह कहा जाता है कि कोई भी संविधान कोई जड़ नहीं बल्कि एक गतिशील दस्तावेज़ होता है, जो समाज की बदलती आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये समय के साथ विकसित और बदलता रहता है। भारत में भी समय, परिस्थिति व जनता के लाभार्थ समय-समय पर संविधान में परिवर्तन किए गए परँतु इसकी मूल भावना अपरिवर्तित है। किसी भी देश को सही तरीके से चलाने के लिए संविधान की जरूरत पड़ती है। संविधान उन आदर्शों को सूत्रबद्ध करता है, जिसे हम अपने देश को अपनी इच्छा और सपनों के अनुसार रच सकें। नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा संविधान ही करता है। उसी अनुरूप समय-समय पर अनेक संशोधन किए गए।

हमारे संविधान ने हमारे गणतंत्र और लोकतंत्र को बहुत मजबूती प्रदान की है।भारत ऐसे देशों से घिरा हुआ है जहाँ सैनिक शासन, खूनी क्रांति होना आम बात है। सत्ता हथियाने के लिए मारकाट, हत्याएं हो रही हैं। अमेरिका जैसे बड़े लोकतंत्र में सत्ता परिवर्तन के समय हाल ही में कितनी शर्मनाक घटनाएँ हुई, हिंसा हुई यह सर्वविदित है। परँतु हमारे भारत में आजादी के बाद से आजतक एक भी घटना ऐसी नहीं हुई। लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति इतनी आस्था है कि चुनावों में पराजय को सत्तादल बड़ी गरिमा से स्वीकार करते हैं और तुरंत अपना त्यागपत्र दे देते हैं, फिर वह चाहे प्रधानमंत्री हों, मुख्यमंत्री हों या निगमों के प्रमुख हों। पराजय के बाद कभी सत्ता प्रमुख से स्तीफा देने के लिए कहना नहीं पड़ता। हमारे देश में दंगा,फसाद, सामूहिक हत्याकांड, आतंकी हमलों आदि जैसी अनेक दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएँ हुईं, परँतु यह हमारे लोकतंत्र की मजबूती ही है कि कभी ऐसी परिस्थिति उत्पन्न नहीं हुई जब किसी ने सैनिक शासन या जबरन सत्ता परिवर्तन की बात किसी ने सोची भी हो। 1975 में लगाया गया आपातकाल एक छोटा सा अपवाद है।

हम भारत के लोगों का यह गुरुतर दायित्व है कि गणतंत्र व लोकतंत्र में अपनी आस्था को किसी भी परिस्थिति में डिगने न दें।लोकतंत्र की परिभाषा के अनुसार यह “जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता का शासन है”। सरकारों व राजनेताओं को इसका आभास कराना भी हमारी ही जिम्मेदारी है।

आप सभी को गणतंत्र दिवस की अनेकानेक बधाई!!

– सर्वज्ञ शेखर
स्वतंत्र लेखक, साहित्यकार

Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x