गणतंत्र पर भीड़तंत्र का शर्मनाक कृत्य

red fort new delhi

2021 का गणतंत्र दिवस मस्तक उन्नत करने की बजाए सर को शर्म से झुकाने के लिए भारी मन से याद किया जाएगा। 26 जनवरी को दिल्ली में विशेषकर लालकिले पर जो दुर्भाग्यशाली घटनाएँ हुईं वह शर्मसार करने वाली हैं, प्रत्येक देशभक्त का खून खौलाने वाली हैं।अभी तक विश्वास नहीं हो पा रहाकि कोई भारतीय ऐसा भी कर सकता है। भारत की आन बान शान की पहचान लालकिले पर अशोभनीय ढंग से चढ़ना, अपना झंडा फहराना, हे भगवान, लिखने में भी हाथ काँप रहे हैं, नयन भीग रहे हैं। बहुत क्रोध आ रहा है, ऐसे लोगों पर। यह अक्षम्य अपराध है। यह एक प्रकार से भारत की प्रभुसत्ता पर हमला है, 13 दिसंबर, 2001 को भारत की पवित्र संसद पर जब हमला हुआ था, तब भी उस घटना को भारतीय लोकतंत्र पर हमला, प्रभुसत्ता को चनौती माना गया था। किसी भी राजदूतावास पर हमले को उस देश पर हमला माना जाता है, तो फिर लालकिले के ऊपर चढ़ना, स्वतंत्रता दिवस पर जहाँ प्रधानमंत्री बडे गर्व से ध्वजारोहण करते हैं वहाँ अपना झंडा फहराना, वहाँ तोड़फोड़ करना, गणतंत्र दिवस परेड की लालकिले में खड़ी झांकियों को जम कर तोड़ना, लालकिले की शुचिता को भंग करना भी प्रभुसत्ता को चुनौती ही माना जाना चाहिए। जो लोग बड़ी बेशर्मी से यह कुतर्क दे रहे हैं कि तिरंगे झंडे को तो छुआ भी नहीं, फिर अपमान कैसे हुआ, जैसे किसी के घर पर हमला कर के अपनी नेमप्लेट लगा दो, फिर कह दो हमने आपकी नेमप्लेट तो उखाड़ी ही नहीं।

मैं अपने लेखन में कभी भावुक नहीं होता, न ही ऐसी शब्दावली का प्रयोग करता हूँ, पर आज हर राष्ट्रभक्त देशवासी की भांति जज्बातों पर नियंत्रण करना मुश्किल हो रहा है। सुरक्षा की दृष्टि से गणतंत्र दिवस पर लालकिले में अंधेरा तक करना पड़ा। राजनेता अपनी दलीय विवशता से कुछ भी कहें, पर इस शर्मनाक कृत्य का विरोध अवश्य किया जाना चाहिए। लेखकों, कवियों साहित्यकारों, पत्रकारों सभी को इस प्रकार की घटना की एक स्वर में मिल कर निंदा करनी चाहिए, तभी राष्ट्रविरोधी तत्वों को सबक मिलेगा व भविष्य में ऐसा काम करने से बचेंगे। कानून भी अपना काम कर रहा है। इन पँक्तियों के लिखे जाने तक 22 एफ आई आर दर्ज की जा चुकी है, अपराधियों की पहचान भी हो चुकी है।

यहाँ उन बातों का भी उल्लेख करना भी आवश्यक है जो इस घटना के अपराधी, साजिश और पुलिस की भूमिका के बारे में चर्चा में हैं। अपराधी किसी भी दल से सम्बद्ध हो, किसी के भी साथ उसकी फोटो हो, किसी का भी उसने प्रचार किया हो, कितने भी उसने अवार्ड जीते हों, ऐसी किसी भी बात से उसका अपराध कम नहीं हो जाता। आशाराम, राम रहीम जैसे अनेक अपराधी राजनीतिक संरक्षण होते हुए भी जेल की हवा खा रहे हैं। ऐसे तमाम राजनीतिक नेता भी जेल में हैं जिनका अपने समय में बड़ा रुतबा हुआ करता था अपराधी का, विशेषकर राष्ट्रविरोधियों का कोई जाति, दल, धर्म नहीं होता। इसी प्रकार पुलिस की भूमिका पर हमेशा उंगली उठती है। गोली चलायें तो निरीह जनता पर अत्याचार, न चलाएं तो पुलिस मूकदर्शक बनी रही। चूँकि यह आंदोलन किसानों का था, हो सकता है पुलिस को सख्ती न बरतने का आदेश हो। अन्यथा पुलिस के लोग पिटते नहीं, करीब 300 पुलिसकर्मी घायल हैं, फिर भी संयम बरतते रहे, गोलियां चलाते तो भारी जनहानि हो जाती। इसी प्रकार साजिश की भी बातें कही जा रही हैं।राजनीति दल और किसान नेता एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं। माना कि कोई साजिश थी, यह कोई स्वतः स्फूर्त प्रतिक्रिया नहीं थी, ऐसा कोई कारण भी नहीं था, अतः किसी योजनाबद्ध साजिश को नकारा नहीं जा सकता। इसकी जांच की जानी चाहिये, पर जाँच के नाम पर अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई को लटकाना नहीं चाहिए।

अब समय है कार्यवाही का। किसान नेता अपने आंदोलन पर पुनर्विचार करें। उन्होंने शांति का वायदा किया था पर वो उपद्रवियों पर नियंत्रण नहीं रख पाए। यह आंदोलन अब धीरे-धीरे जनसमर्थन खोने लगेगा। सरकार को भी चाहिए कि अपराधियों को तुरंत गिरफ्तार करके उन्हें कानून के शिकंजे में ले।

– सर्वज्ञ शेखर
स्वतंत्र लेखक, साहित्यकार

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