तम्बाकू से कर लो तौबा : सौंफ इलाईची लो चबा

31 मई : विश्व तम्बाकू निषेध दिवस पर विशेष

प्रति वर्ष 31 मई को विश्व तम्बाकू निषेध दिवस के रूप में मनाया जाता है| इसे मनाने का मुख्य उद्देश्य लोगों को इसके दुष्प्रभावों के बारे में जागरूक करना है और लोगों को दुनिया भर में किसी भी रूप में तंबाकू की खपत को कम करने या पूरी तरह से रोकने के लिए प्रोत्साहित करना है| इस अभियान में शामिल विभिन्न संगठन जैसे राज्य सरकारें, सार्वजनिक स्वास्थ्य संगठन आदि स्थानीय स्तर पर विभिन्न जन जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं|

किसे पता था कि 5000-3000 ई. पू. के काल में जिस पदार्थको जला कर सुगंधित धूप के रूप में प्रयोग किया जाता था, वही पदार्थ तम्बाकू, अब जीवन में दुर्गंध उत्पन्न कर देगा| प्रारम्भिक काल में तम्बाकू का उपयोग सुगंध, झाड-फूंक, दवा के रूप में किया जाता था| उसी दवा से उत्पन्न रोगों के लिये अब दूसरी दवाएं खानी पड रहीं है|

सर्व प्रथम पुर्तगाल में 1612 में इसकी खेती की गई | परंतु एक शोध में पाया गया कि जिस जमीन में तम्बाकू की खेती होती है, वहां की उर्वरा शक्ति भी कम हो जाती है| इसी अवधि में पुर्तगाल में फ्रांस के राजदूत जीन निकोट ने अपनीपत्नी को तम्बाकूके सुगंधित बीज उपहार में भेजे | उन्ही के नाम पर तम्बाकू का वानस्पतिक नाम निकोशिया या निकोटीन रखा गया |

जैसे जैसे इसका प्रचलन बढ्ता गया, तम्बाकू का विरोधभी शुरू हो गया क्योकि इसके सेवन से होने वाली हानियों का अहसास होने लगा था | पर इसकी लत ऐसी है कि कम होने की बजाय बढती चली गई | 1604 में इंगलेंड में जेम्स प्रथम ने इस पर कर लगायाऔर कर को 4000% तक बढा दिया, फिर भी कोई असर नहीं हुआ | इसी लिये दुनिया भर में नो टुबैको डे का आयोजन करने का मुख्य उद्देश्य आम जनता को तम्बाकू और इसके उत्पादों के उपभोग को कम करने या रोकने के लिए प्रोत्साहित करना है क्योंकि इससे कुछ घातक बीमारियां (cancer, हृदय की समस्या) हो सकती है जिससे मौत तक हो जाती है | इस अभियान की वैश्विक सफलता के लिए देश के विभिन्न क्षेत्रों के व्यक्ति, गैर-लाभकारी संस्थाएं और सार्वजनिक स्वास्थ्य संगठन इस उत्सव में बहुत सक्रिय रूप से भाग लेते हैं | तंबाकू के उपयोग के खराब प्रभावों से संबंधित सूचनाएं प्रदर्शित करने के लिए पोस्टर वितरित करते है ।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक दुनिया के करीब125 देशों में तंबाकू का उत्पादन होता है। दुनियाभर में हर साल करीब 5.5 खरब सिगरेट का उत्पादन होता है और एक अरब से ज्यादा लोग इसका सेवन करते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में 80 फीसदी पुरुष तंबाकू का सेवन करते हैं, लेकिन कुछ देशों में महिलाओं में धूम्रपान करने की आदत काफी बढ़ी है। तम्बाकू के उपयोग से हर साल दुनियाभर में 10 में से 1 लोग मरते है जबकि दुनिया भर में तम्बाकू का उपयोग करने वालों की संख्या 1.3 अरब है | 2020 तक हम तंबाकू का उपयोग करने वाले लगभग 100 मिलियन लोगों की मृत्यु को नियंत्रित कर सकते हैं |

तम्बाकू खाना , सिगरेट पीना स्वस्थ्य के लिए हानिकारक होता है, ये तो सभी जानते हैं| तम्बाकू का ही एक रूप होता है गुटखा, जिसे कत्था और सुपारी को मिलाकर तैयार किया जाता है. इसके साथ ही एक ऐसा जहरीला कैमिकल मिलाया जाता है जो धीरे-धीरे असर करता हुआ मुंह से लेकर शरीर के दूसरे जरूरी अंग पर प्रभाव करता है| तम्बाकू खाने से कैंसर होता है सभी जानते है लेकिन इससे ऐसी बहुत सी अन्य खतर्नाक बीमारियां भी हो जाती हैं | लगातार गुटखे या तम्बाकू का सेवन दांत को ढीले और कमजोर बना देते हैं| बैक्टीरिया दांतों में जगह बना लेते हैं, जिससे दांतों का रंग बदलने लगता है और धीरे-धीरे दांत गलने भी लगते हैं| शरीर के एंज़ाइम्स पर भी तम्बाकू बुरा प्रभाव डालता है| गुटखे में कई तरह के नशीले पदार्थों का भी मिश्रण होता है, जिसकी वजह से शरीर के एंज़ाइम्स पर बुरा असर पड़ता है| जीभ, जबड़ों और गालों के अंदर सेंसेटिव सफेद पेच बनने लगते हैं और उसी से मुंह में कैंसर की शुरुआत होती है, जिसके बाद धीरे-धीरे मुंह का खुलना बंद हो जाता है और मुंह में कैंसर फैल जाता है| कैंसर सिर्फ मुंह तक ही नहीं रुकता बल्कि ये श्वासनली से होता हुआ फेफड़े तक पहुंच जाता है और इससे फेफड़े में भी कैंसर का खतरा बढ़ जाता है| पेट में दर्द और अल्सर जैसी बीमारियां भी शुरु हो जाती है|

जिन घरों में धूम्रपान किया जाता है वहा बचपन से ही बच्चे’धूम्रपान’ की ज्यादतियों के शिकार हो जाते हैं। इसे पेसिव स्मोकिंग या सेकंड हैंड स्मोकिंग कहते है | यह भी उतनी ही समस्याएँ पैदा करती हैं जितनी किसी धूम्रपान करने वाले को हो सकती है। बच्चों में यह समस्या और गंभीर इसलिए हो जाती है, क्योंकि उनका विकास हो रहा होता है। साथ ही उनकी साँस लेने की गति भी वयस्कों से अधिक होती है।

कोई वयस्क एक मिनट में लगभग 16 बार साँस लेता है, जबकि बच्चों में इसकी गति अधिक होती है। पाँच साल का एक सामान्य बच्चा एक मिनट में 20 बार साँस लेता है। किन्हीं विशेष परिस्थितियों में यह गति बढ़कर 60 बार प्रति मिनट तक हो सकती है। जाहिर है कि जिन घरों में सिगरेट या बीड़ी का धुआँ रह-रहकर उठता है उन घरों के बच्चे तंबाकू के धुएँ में ही साँस लेते हुए बड़े होते हैं। एक शोध के अनुसार विकासशील देशों में हर साल 8 हजार बच्चों की मौत अभिभावकों द्वारा किए जाने वाले धूम्रपान के कारण होती है।

चूँकि वे वयस्कों से अधिक तेज गति से साँस लेते हैं इसलिए उनके फेफड़ों में भी वयस्कों के मुकाबले अधिक धुआँ जाता है। धुएँ के साथ जहरीले पदार्थ भी उसी मात्रा में दाखिल होते हैं। देश के ग्रामीण इलाकों में महिलाओं में बीड़ी पीना बहुत सामान्य है। इसी तरह शहरी भद्र समाज की आधुनिक महिलाओं में यहाँ तक कि लड़कियों में सिगरेट पीना फैशन बनता जा रहा है।

गर्भधारण की अवधि में सिगरेट या बीड़ी पीने वाली महिलाओं को कम वजन के बच्चे पैदा होते हैं। ऐसे बच्चों की रोग प्रतिरोधक शक्ति कम होती है तथा वे जल्दी किसी बीमारी से घिर जाते हैं। ऐसे बच्चों को दिमागी लकवे की शिकायत हो सकती है साथ ही सीखने में असमर्थता की भी समस्या होती है।

*तम्बाकू निषेध दिवस पर*
*कुछ संकल्प प्रण कर लो*
*बीड़ी सिगरेट पानमसाला से*
*तौबा आज से ही कर लो*
*नादानों छोड़ो इन सब को*
*सौंफ इलाइची खाओ*
*तम्बाकू को बोलो थू थू*
*बीमारी दूर भगाओ*

-सर्वज्ञ शेखर

पहले यहाँ प्रकाशित हुआ: http://yuvapravartak.com/?p=15238.

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