सप्ताहांत: हर्ष फायरिंग का विषाद

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आगरा के एत्मादपुर में हाल ही में एक शादी समारोह में हर्ष फायरिंग की घटना सामने आने से यह सिद्ध हो गया है कि कानून बन जाने के बावजूद इस प्रकार की घटनाएँ रुक नहीं रही हैं। नाम तो है हर्ष फायरिंग लेकिन हर्ष को विषाद और खुशी को मातम में बदल देने वाली हर्ष फायरिंग कड़े कानून और अकाल मौतों की घटनाओं के बावजूद कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। कहीं डांसर तो कहीं बेंडवालों, कहीं बारात देख रहे बच्चों और महिलाओं तो कहीं दूल्हा दुल्हन या उनके रिश्तेदारों को ही गोली लग जाती है। लोग घायल हो जाते हैं या मौत के मुँह में भी समा जाते हैं। हर्ष फायरिंग अब केवल बारातों तक ही सीमित नहीं रह गई है। जन्मदिन, शादी की वर्षगाँठ, विजय जुलूस, छठ पूजन, नए साल का जश्न, धार्मिक आयोजनों आदि आदि किसी भी खुशी के अवसर पर खुलेआम इसका भोंडा प्रदर्शन किया जा रहा है। इसके अलावा पहले यह गांवों तक ही सीमित थी परंतु अब शहरों, अभिजात्य वर्ग, यहाँ तक कि कानून बनाने वाले नेताओं को भी कोई परहेज नहीं रह गया है और फायरिंग को खुशी के इज़हार का माध्यम बना दिया गया है।

समाजविज्ञानियों के अनुसार हथियारों का प्रदर्शन सामंतवाद से प्रभावित है। शक्ति प्रदर्शन पुराने जमाने में जरूरी होता था। राजे रजवाड़ों के यहां शादी विवाह के मौकों पर प्रशिक्षित तलवार बाज आदि आते थे। शादी और खुशी के मौकों पर कई तरह के खेल खेले जाते थे। असलहों का प्रदर्शन किया जाता था। यह भी कहा जाता है कि लोगों को शादी की जानकारी देने के लिए भी तेज ढोल नगाड़े बजाए जाते थे, आतिशबाजी की जाती थी। बदलते समय के साथ तलवार की जगह दुनाली, तमंचे और बंदूकों ने ली। अब शादी विवाह के मौकों पर वे अपनी सामर्थ्य और शक्ति का प्रदर्शन करते हैं और गांव वाले, मुहल्ले वाले देखते हैं। सामंतीयुग में दूल्हा-दुलहन के परिवार वाले एक दूसरे से ज्यादा ताकतवर दिखने के लिए हवाई फायरिंग किया करते थे। जैसे ही समय बदला बाजारवाद आया। ऐसा लगा कि इन हथियारों का का चलन कम होगा, लेकिन यह और बढ़ गया।

उत्तर प्रदेश के कन्नौज में इसी नव वर्ष की पूर्व संध्या पर रायफल से कई राउंड हर्ष फायरिंग करने वाले पांचों आरोपियों को इंदरगढ़ पुलिस ने गिरफ्तार किया। पांचों युवकों का हर्ष फायरिंग करते हुए वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। मेरठ में इसी माह के शुरू में नए साल के जश्न में क्राइम ब्रांच के सिपाही सौरभ यादव को गोली लगी थी। हाईवे स्थित होटल में नए साल की पूर्व संध्या पर तमंचे पर डिस्को चल रहा था। माना जा रहा है कि सिपाही को हर्ष फायरिंग में गोली लगी ।ऐसा भी कहा गया कि किसी विवाद में सिपाही के एक दोस्त ने उसे गोली मारी।

इसी प्रकार की पिछले कुछ माह की अन्य घटनाओं में 29 दिसंबर 2020 को उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले के ककराला इलाके में एक बरातघर में शादी के दौरान हर्ष फायरिंग के दौरान गोली लगने से एक युवक की मौत हो गई। इससे हड़कंप मच गया। सभी लोग खाना छोड़कर मौके से भाग गए।13 दिसंबर 2020 को बिहार के भोजपुर जिले में हर्ष फायरिंग के दौरान गोली लगने से दो युवकों की मौत हो गई।12 दिसंबर 2020 को मध्यप्रदेश के राजगढ़ जिले के लहारची गांव में एक विवाह समारोह के दौरान की गई हर्ष फायरिंग से 12 वर्षीय एक लड़के की मौत हो गई।24 नवंबर 2020 को उत्तर प्रदेश के अमरोहा में शादी समारोह में उस समय रंग में भंग पड़ गया जब हर्ष फायरिंग के दौरान दूल्हे के एक करीबी दोस्त को पेट में गोली लग गई।

यह तो कुछ उदाहरण हैं। ऐसी दस बीस नहीं बल्कि सैंकडों दुर्भाग्यशाली घटनाएं पिछले कुछ वर्षों में घटित हो चुकी हैं। ऐसा नहीं है कि हर्ष फायरिंग को रोकने के लिए कोई कानून नहीं है। केंद्र सरकार ने शस्त्र संशोधन विधेयक 2019 को संसद से मंजूर करा लिया है। शस्त्र संशोधन विधेयक 2019 में हर्ष फायरिंग को अपराध घोषित करके फायरिंग करने वालों को दो साल की कैद और 1 लाख रुपये जुर्माने की भी प्रावधान किया गया है। गृहमंत्री अमित शाह ने विधेयक पर चर्चा के दौरान बताया कि यह गलत धारणा है कि लाइसेंसी हथियारों से हर्ष फायरिंग में किसी की जान नहीं जाती। 2016 में उत्तर प्रदेश में 191, बिहार में 12 और झारखंड में 14 लोगों की जान लाइसेंसी हथियारों से की गई हर्ष फायरिंग में गई थी। कानून बन तो गया पर कानून का किसी को भय नहीं हैं। अधिकांश मामलों में घटना हो जाने के उपराँत कार्यवाही की गई है, घटना को होने से रोक पाने में कानून के रखवाले असमर्थ रहे हैं।

2016 में दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा था कि शादी व अन्य उत्सवों में होने वाली हर्ष फायरिंग के दौरान कोई हादसा होता है तो इसके लिए शादी अथवा उत्सव के आयोजकों को भी जिम्मेदार माना जाएगा। यह बात एक पिता की ओर से दायर मुआवजा याचिका पर सुनवाई के दौरान कही। याची की नाबालिग बेटी की अप्रैल 2016 में घुड़चढ़ी के दौरान हर्ष फायरिंग में गोली लगने से मौत हो गई थी। जस्टिस विभू बाखरू ने कहा था कि कार्यक्रम व उत्सव आयोजक को तय करना होगा कि उसके मेहमान हर्ष फायरिंग नहीं करेंगे। अगर हर्ष फायरिंग की जाती है तो वह इसकी जानकारी पुलिस को देंगे। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस मामले में कुछ न कुछ किया जाना चाहिए। अगर सरकार कोई दिशा-निर्देश नहीं बनाती है तब तक आयोजक को ही इसके लिए जिम्मेदार माना जाएगा। आप यह नहीं कह सकते कि हर्ष फायरिंग की आपको जानकारी नहीं थी या अपने रिश्तेदारों को हथियार लाने के लिए नहीं कहा था।

यह सही है कि असलाह धारकों को यदि कानून से भय नहीं है तो कार्यक्रम के आयोजकों को ही बचाव के लिए कुछ करना होगा। उन्हें इतनी हिम्मत करनी होगी कि कोई कितना भी प्रभावशाली या दबंग ही क्यों न हो, हथियारों के साथ प्रवेश ही न कर पाएँ। निमंत्रण पत्र पर भी हथियार सहित न आने का संदेश दिया जा सकता है। हर्ष फायरिंग करने वालों को हर हाल में हताश करना ही होगा।

– सर्वज्ञ शेखर
स्वतंत्र लेखक, साहित्यकार

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