सप्ताहांत: बच्चों से भी सीख मिलती है

स्वराज्य_टाइम्स, 20 अक्तूबर, 2019

children

स्वाभाविक रूप से माता-पिता, गुरुजन तो बच्चों को शिक्षा प्रदान करते ही हैं, पीढ़ियों में कम और शिक्षा व्यवस्था में ज्यादा परिवर्तन के कारण, आजकल बच्चे बड़ों को सीख देने में सक्षम हो गए हैं। प्राचीन काल में कोई स्कूल, कॉलेज या विश्व विद्यालय कहाँ थे फिर भी विद्वानों की कोई कमी नहीं थी। कबीर दास जी ने कहा भी है ‘मसि कागद छुओ नहीं, कलम गही नहीं हाथ”। हमसे पहले की पीढ़ी के लोग भी कामचलाऊ पढ़ाई कर पाते थे, कुछ बिरले बी ए या एम ए कर लेते थे तो बड़े फख्र से अपने नाम के आगे डिग्री लगाते थे। परंतु संचार क्रांति, कम्प्यूटर का आगमन, तकनीक और डिजिटलाइजेशन के युग में केवल एक पीढ़ी पुराने लोग ही बहुत पिछड़ गए। कम्प्यूटर, मोबाइल या लैपटॉप पर काम करते समय बड़ों को बच्चों का सहयोग लेना ही होता है।

यह तो हुई अकादमिक शिक्षा। संस्कार, गुणों व परिपक्वता के मामले में भी बच्चे अब बहुत आगे हैं। जो कुछ समाज में घटित हो रहा है उससे वज बड़ी जल्दी प्रभावित हो रहे हैं, सवाल करते हैं, जिज्ञासा शांत करते हैं।

एक कार्यक्रम में एक वक्ता ने स्वच्छता के बारे में अपना स्मरण सुनाते हुए बताया कि उन्होंने जैसे ही केला खा कर छिलका नीचे फेंका, उनके बेटे ने तुरंत उठाया और डस्ट बिन में फेंका। मेरे एक दूर के रिश्तेदार हैं, वह पान मसाला बहुत खाते हैं। उन्होंने स्वयं बताया कि उनकी पौत्री रात में मेरे कपड़ों को टटोल कर जेब में से पान मसाले के पाउच ढूंढ लेती है और नाली में फेंक देती है। इसी प्रकार एक बार आगरा में जब “नो मतलब नो, तंबाकू को बोलो नो” अभियान चलाया जा रहा था तो आयोजकों ने एक विद्यालय में कार्यक्रम रखा। मैंने कहा, ये विद्यार्थी तो तम्बाकू खाते नहीं हैं, इसलिए विद्यालय में इस कार्यक्रम का क्या औचित्य है। आयोजकों ने बताया कि ये विद्यार्थी तो नहीं खाते हैं, परंतु जब इन्हें तंबाकू से होने वाली बीमारियों के बारे में जानकारी दी जाएगी तो ये अपने पिता, भाई हर उस व्यक्ति को मना करेंगे जो तंबाकू खाता होगा। अभी “प्लास्टिक को कहो ना” विषय पर एक परिचर्चा में मैंने भाग लिया। वहाँ भी सभी की यह राय थी कि छोटे बच्चों, विद्यार्थियों को जागरूक किया जाए तो वह खुद भी प्लास्टिक की पानी की बोतल,लंच बॉक्स का प्रयोग नहीं करेंगे बल्कि अपने माता-पिता व अन्य लोगों को भी ऐसा करने से रोकेंगे।

उपरोक्त सारे तथ्य काल्पनिक नहीं वरन सत्य हैं। इनको उद्धृत करने का हमारा तात्पर्य यह रेखांकित करने का प्रयास है कि बच्चे बहुत जागरूक हैं, यदि वह कुछ अच्छा करने को कहते हैं तो बुरा न मानें, उनकी बात को समझें। कल का बच्चा हमें ज्ञान दे रहा है, ऐसी भावना मन में न लाएं।

– सर्वज्ञ शेखर

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End of Week: We learn from Children too

Swarajya Times, October 20, 2019

Naturally, the parents, the gurus, provide education to the children, due to fewer generations and more changes in the education system, nowadays children are able to teach the elders. Where there were no schools, colleges or world schools in ancient times, there was no shortage of scholars. Kabir Das ji has also said ‘masi kaagad chhuo nahin, kalam gahee nahin haath’. People before us were also able to study improvised, some rarely did BA or MA, and they used to put degrees in front of their names. But in the era of communication revolution, arrival of computers, technology and digitalization, only a generation old people lagged behind. While working on computer, mobile or laptop, elders have to take the support of children.

This is academic education. Children are now far ahead in terms of values, values ​​and maturity. Whatever is happening in the society, they are getting affected very quickly, they ask questions, calm their curiosity.

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abhigyan gupta
abhigyan gupta
October 27, 2019 1:17 pm

बहुत अच्छा विचार है आपके

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