सप्ताहांत – हैदराबाद एनकाउंटर: बुराइयों में से निकली अच्छाई

hyderabad encounter

यह सप्ताह कभी खुशी कभी गम दे कर व्यतीत हुआ। हैदराबाद की डॉक्टर बेटी के साथ व्यभिचार के आरोपियों की पुलिस के साथ मुठभेड़ में मौत ने जहाँ लोगों के मन में खुशी के भाव जागृत किए तो उन्नाव की पीड़िता की दिल्ली में मौत ने पुनः दुखी कर दिया। सात साल बीत जाने के बाद भी निर्भया के दोषियों को फाँसी न होने पर एक बार फिर आक्रोश उमड़ पड़ा। अब हो सकता है राष्ट्रपति महोदय दया याचिका को जल्दी ही खारिज कर दें और निर्भया के आरोपी फांसी के फंदे पर झूल जाएं।

हैदराबाद में पुलिस ने जो एनकाउंटर किया उसके पक्ष और विपक्ष में बहस चल निकली है। वास्तव में एनकाउंटर किया नहीं जाता,बल्कि परिस्थितियों वश हो जाता है। पुलिस की इच्छा तो यही रहती है कि अपराधी उसकी अभिरक्षा में जीवित रहे ताकि ज्यादा से ज्यादा जानकारी जुटाई जा सके व गोपनीय राज उगलवाये जा सकें। परंतु जब अपराधी हिंसक हो जाए, पुलिस पर हमला करे या भागने की कोशिश करे तो मजबूरन एनकाउंटर करना होता है। आत्मरक्षा में किए गए एनकाउंटर को कानूनी रूप से वैध माना जाता है। परंतु एनकाउंटर की इमेज जनता के दिमाग में नकारात्मक ही है। विगत में हुए अनेक फेक एनकाउंटरों की वजह से भी नकारात्मक धारणा पुष्ट हुई है। ऐसे अनेक मामलों में न्यायालयों ने दोषी पुलिसकर्मियों को सजा भी दी है। यहाँ तक हो गया है कि बिल्कुल सही एनकाउंटर को भी शक की निगाह से ही देखा जाता है। परंतु हैदराबाद एनकाउंटर पर जनमत बिलकुल ही विपरीत था। लोगों में अपार खुशी की लहर दौड़ गई, पुलिसकर्मियों की जय-जय कार हुई, पुष्प वर्षा हुई,लाखों रुपयों के इनाम घोषित हो गए।

ऐसा क्यों हुआ? इसका समुचित जवाब दिया वरिष्ठ साहित्यकार मैत्रेयी पुष्पा ने। उन्होंने कहा “अगर कानून और न्याय की व्यवस्था ठीक से चल रही होती तो शायद स्त्रियां हैदराबाद एनकाउंटर का इस तरह से स्वागत नहीं करती। यह स्वागत मजबूरी में किया गया है।”

यह सबसे सटीक टिप्पणी है। जब हमें बुराईयों में से अच्छाई ढूंढनी होती है तो कम बुरी बात को स्वीकार करना ही होता है। हैदराबाद एनकाउंटर कोई दूध का धुला नहीं है। यह अनेक सवालों के घेरे में है। राजनेताओं को तो हमेशा वोट की चिंता रहती है, अतः मेनका गांधी जैसे कुछ अपवादों को छोड़ कर सभी ने एनकाउंटर का स्वागत किया या सतर्क प्रतिक्रिया दी। परंतु अधिकांश न्यायविदों ने अपनी स्वतंत्र प्रतिक्रिया देते हुए एनकाउंटर को गलत और इस प्रकार के त्वरित न्याय को देश के भविष्य के लिए खतरनाक बताया। एक बात यह भी है कि जिन लोगों को मारा गया वो वास्तव में बलात्कारी थे भी या नहीं यह भी सिद्ध नहीं हुआ था।ऐसा तो नहीं कि हो रही बदनामी से बचने व दवाब को समाप्त करने के लिए पुलिस ने यह सुनियोजित कार्य किया हो,इसका जवाब मजिस्ट्रेट की जांच में मिलेगा। उच्च न्यायालय में भी एनकाउंटर पर सुनवाई शुरू हो गई है। न्यायालय ने चारों शवों को सुरक्षित रखने और पोस्टमार्टम का वीडियो बनाने का आदेश दिया है। अभी तो आक्रोश की ज्वाला को एनकाउंटर ने शांत कर दिया है पर जैसे जैसे समय व्यतीत होगा सच्चाई की परतें उघड़ने लगेंगी।

हम तो यही कामना करते हैं कि सारी जांचों में एनकाउंटर सही निकले,पुलिस ने जो घटनाक्रम बताया है वह सत्य सिद्ध हो और खुशी की यह लहर ज्वार भाटों में परिवर्तित हो जाए।

– सर्वज्ञ शेखर

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