सप्ताहांत: क्या आपको पता है कि आप को सब कुछ पता है?

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मैं आज अपनी बात शुरू करुँ, उससे पूर्व मैं सभी सुधी पाठकों, शुभचिंतकों व अपने उन मित्रों का आभार प्रकट करना चाहता हूँ जो सप्ताहांत पढ़ने के उपरांत मुझे फोन करके या मेरे व्हाट्सएप पर या मेरे फेसबुक पर अपनी प्रतिक्रिया देते हैं और उत्साहवर्धन करते हैं। मैं ज्यादा कहूंगा तो आत्मप्रशंसा ही माना जाएगा। बस इतना अवश्य कहना चाहता हूँ कि बहुत लोग सप्ताहांत की प्रतीक्षा करते हैं, ऐसा उन्होंने मुझे कहा।

यह सप्ताह भी बहुत गहमागहमी भरा रहा। सूचनाएं भी बहुत रही। राफेल युद्धक विमान आ गया, कोरोना का विस्फोट लगातार हो रहा है, लेकिन उसकी आजकल कोई चिंता नहीं कर रहा। अचानक सुशांत आत्महत्याकांड का मसला एक बार फिर सुर्खियों में आ गया घटनाएँ जितनी तेजी से घट रही हैं उतनी ही गति से पुरानी भी हो रही हैं। बस एक नया विषय है 5 अगस्त को अयोध्या में होने वाला राम जन्म भूमि का शिलान्यास। हम उसके लिए अपनी मंगलकामनाएँ प्रेषित करते हैं। हम मानते हैं यह राजनीतिक नहीं एक धार्मिक और सांस्कृतिक, करोड़ों भारतीयों की आस्था से जुड़ा विषय है और इस अवसर पर सभी को प्रमुदित होना चाहिए, खुश होना चाहिए।

इसलिए आज हम एक सामान्य लेकिन महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा करने जा रहे हैं। क्या आपको पता है कि आपको सब कुछ पता है? जी हां, यह आज का विषय है सप्ताहांत का। यह मान कर चला जाता है कि आपको सब कुछ पता है। यदि हत्या करने के उपरांत कोई अपराधी अदालत में यह कहे कि उसको यह मालूम नहीं था कि हत्या की सजा फाँसी होती है तो वह हत्या करता ही नहीं। यह तर्क न्यायालय में स्वीकार्य नहीं होगा। क्योंकि यह मानकर चला जाता है कि सभी ने आईपीसी की सारी धाराएँ पढ़ी हैं, भारत का पूरा संविधान पढ़ा है, सारी न्याय व्यवस्था की जानकारी है।

यह सत्य है, बैंक में या किसी भी कार्यालय में भी ऐसा ही होता है। जब तक सब कुछ सही चल रहा है, तो ठीक है। लेकिन यदि कोई भूल हो जाए, किसी प्रकार जाने अनजाने गलती हो जाए तो फिर सारे मैनुअल निकाल कर दिखाए जाते हैं, बताया जाता है इसमें ऐसा लिखा था, आपने ऐसा नहीं किया। यह मानकर चला जाता है कि आपने अपने कार्यालय के सारे सर्कुलर, मैनुअल पढे हुए हैं और आपको सारी व्यवस्था की जानकारी है। इंग्लिश में भी एक कहावत है कि “इग्नोरेंस इज नो एक्सक्यूज।”

यदि किसी की कोई वस्तु खो जाती है, या नाम परिवर्तन करना है या किसी से संबंध विच्छेद करना हो, आदि मामलों में वकील यह कहते हैं कि आप किसी भी अखबार में एक छोटा सा विज्ञापन निकलवा दीजिए। तात्पर्य है कि एक छोटे से अखबार के छोटे से कोने में छपने के बाद यह मान लिया जाता है कि सारी जनता ने उसको पढ़ लिया और पढ़ने के उपरांत अगर किसी को आपत्ति है तो वह निर्धारित समय में आपत्ति दे। इसी प्रकार संपत्ति की नीलामी या कुर्की, उसके आदेश भी अखबारों में छपते हैं। जिनको जानकारी है वह तो उन समाचारों को विज्ञापनों को पढ़ते हैं, लेकिन बाकी लोगों द्वारा नहीं पढ़ने पर भी यह मान के चला जाता है कि सभी ने उनको पढ़ लिया है और समझ लिया है।

इसी प्रकार टीवी पर जब कोई विज्ञापन आता है और उसमें बहुत छोटे-छोटे अक्षरों में नियम व शर्तें लिखी होती हैं तब भी यह मान कर चला जाता है कि आपने उसको पढ़ लिया है। आप बैंक से या किसी वित्तीय संस्था से कर्ज लेते हैं, तब इतनी सारे कागजों पर आपके हस्ताक्षर कराए जाते हैं, और एग्रीमेंट पर साइन कराए जाते हैं, उन्हें आप पढ़ते नहीं लेकिन चूँकि अपने हस्ताक्षर कर दिए इसलिए यह मानकर चला जाता है कि उस में जो कुछ लिखा है उसे आप सब जानते हैं व समझते हैं। मोबाइल पर आप कोई ऐप डाउनलोड करते हैं तब भी ऐसा ही होता है। उसमें जितने सवाल आते हैं आप उसको यस-यस करते हुए आगे बढ़ते चले जाते हैं। तब भी यह मानकर चला जाता है कि मोबाइल ने आप से जितने सवाल किए उन सब को आप जानते हैं और आपने समझ बूझ कर उत्तर दिया है। तात्पर्य है कि आपको पता होना चाहिए कि आपको सब कुछ पता है।

आजकल कोरोना काल चल रहा है और रोज नए नियम कानून बन रहे हैं। हाल ही में झारखंड में तो मास्क न पहनने पर एक लाख रुपयों के जुर्माने का प्रावधान किया गया है। अभी भारत सरकार ने भी मास्क न लगाने और सीट बेल्ट न लगाने पर नए दंड की घोषणा की है।

इसी प्रकार से कोरोना महामारी एक्ट के अंतर्गत भी बहुत सारे प्रावधान हैं। घर से बाहर निकलते ही ये नियम लागू हो जाते हैं। हमारा तो इतना ही कहना है कि आप जब भी घर से बाहर निकलें, सतर्क रहें और कम से कम इतना तो आप पता रखें जितना कि आपको पता होना चाहिए।

– सर्वज्ञ शेखर

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