सप्ताहांत: कोरोना और राष्ट्र के दुश्मनों पर निर्णायक प्रहार का समय है

coronavirus

यह सप्ताह दो घटनाओं से परिपूर्ण रहा। एक तो भारत-चीन सीमा पर हलचल और दूसरा बाबा रामदेव द्वारा कोरोना की तथाकथित दवा कोरोनिल की लॉन्चिंग।

महत्वाकांक्षा होना अच्छी बात है, लेकिन अति महत्वाकांक्षा कभी-कभी असफलता का चेहरा दिखा देती है। बाबा रामदेव ने कोरोनिल को कोरोना की दवा बता कर लांच किया, उनके साथ शायद ऐसा ही हुआ। आयुर्वेद में सभी बीमारियों का इलाज है, लेकिन शायद उन्हीं बीमारियों का इलाज है जो आयुर्वेद की स्थापना के समय होती थी। कोविड-19 एक नई प्रकार की बीमारी है और इसको आयुर्वेद से ठीक किया जा सकता है या नहीं यह भी चिंतन का विषय है। परंतु बाबा रामदेव ने कुछ जल्दबाजी में इस दवा से कोरोना सही करने का दावा पेश कर दिया, जबकि वह कुछ हफ्ते पहले तक नाक में सरसों का तेल डालने से ही कोरोना दूर हो जाएगा, ऐसी बात कहते थे।

जब विवाद शुरू हुआ, यह सब के साथ होता है कि जब कोई विवाद शुरू होता है तो पुराने विवाद भी सामने आने लगते हैं। बाबा ने पहले मैगी का विरोध किया पर खुद मेगी बनाई, फटी जीन्स को निर्लज़्ज़त का प्रतीक बताते थे फिर खुद ही फटी जींस बेची। केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की कितनी सारी परियोजनाओं के लिए उन्होंने बातचीत की, उनको अपने पक्ष में लेने की कोशिश की, कितनी ठेकों को लेने की कोशिश की। लेकिन जब सरकारों को भी मालूम चल गया तो उन्होंने इतनी आसानी से बाबा को सरकार की किसी परियोजना में शामिल नहीं किया या बहुत सख्त नियमों के साथ किया क्योंकि सरकार भी नहीं चाहती है कि किसी को यह आभास हो, जैसा कि बाबा रामदेव कहते रहते हैं उनके सभी से अच्छे संबंध हैं।

सामान्य परिस्थितियों में किसी दवा को विकसित करने, उसके क्लिनिकल ट्रायल पूरे करने और उसे बाजार में लाने का काम शुरू करने में कम से कम तीन साल का समय लगता है। विशेष परिस्थितियों में यह अवधि कम हो सकती है, लेकिन फिर भी कम से कम 10 महीने से एक साल का समय तो लगता ही है।

परंतु जल्दबाजी में तैयार की गई यह दवा कितनी कारगर है, कितनी कारगर नहीं, यह तो आयुष मंत्रालय के परीक्षण के उपरांत और अनुमति मिलने और अनुमति ना मिलने पर ही निर्भर करेगा। लेकिन एक बात अवश्य है, आयुर्वेद का इस प्रकार से मखौल नहीं होना चाहिए नहीं तो लोगों का आयुर्वेद से विश्वास उठ जाएगा ।

दूसरी ओर भारत चीन सीमा पर तनाव अभी जारी है बल्कि तनाव और बढा है। भारत सरकार इस तनाव को कम करने के लिए, सीमा विवाद को हल करने के लिए, राजनीतिक, कूटनीतिक और सामरिक स्तर पर अपने प्रयास जारी रखे हुए है। लेकिन जैसा कि हमेशा होता है अमेरिका बीच में कूद पड़ा है और उसने एशिया में अपनी सेना तैनात करने का निर्णय किया है। अमेरिका ऐसा ही करता है। पहले दो देशों को लड़ाता है और फिर बीच में कूद पड़ता है और अपने सैनिकों को वहां भेज देता है।

यह समय बहुत संयम का है, राजनीतिक और कूटनीतिक कौशल की परीक्षा का है। सरकार अपनी तरह से इन सारे विवादों का हल करने के लिए और सीमा पर शांति के लिए प्रयासरत है। हम सबको सरकार का साथ देना चाहिए। यदि कोई आशंका है या सवाल है तो अभी चुप रहना चाहिए।

लेकिन देखा जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के नेता एक दूसरे को नीचा दिखाने में लगे हुए हैं। तर्क वितर्क कुतर्कों के तीर चल रहे हैं। कांग्रेस के नेताओं को भी यह समझना चाहिए की जनमानस की भावना क्या है। जनमानस की भावना के विरुद्ध बयानबाजी करके वह कांग्रेस का कोई लाभ नहीं पहुंचा रहे वरन उसका नुकसान ही कर रहे हैं। पहले भी यह देखा गया है कि कांग्रेस के नेता अपने बयानों से सेल्फ गोल कर के चुनावों में भी अपना नुकसान कर चुके हैं और जनता में भी अपनी छवि खराब कर चुके हैं। राष्ट्र की सुरक्षा और सेना के शौर्य के मामले में भारतीय बहुत जज़्बाती हैं।

पाकिस्तान तो हमारा शत्रु है ही। लेकिन नेपाल, भूटान, बांग्लादेश और चीन ने जो नाक में दम कर रखा है, ऐसी दशा में हमें दलगत राजनीति से ऊपर उठकर अपनी एकता का प्रदर्शन करना है, अपनी सेना का मनोबल बनाए रखना है। विजय हमारी ही होगी। कोरोना और भारत के दुश्मन, दोनों के दाँत खट्टे करने का अब निर्णायक समय है। कुछ समय के लिए समय खराब हो सकता है। लेकिन दोनों मोर्चो पर विजय हमारी ही होगी, यह विश्वास तो अटल है।

– सर्वज्ञ शेखर

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