आगमन प्रतियोगिता चित्र पर लिखो: विजेता

आपको यह सूचित करते हुए प्रसन्नता है कि आगमन प्रतियोगिता -38, विषय- चित्र पर लिखो, विधा- गद्य में मुझे विजेता घोषित किया गया है।

चित्र व आलेख प्रस्तुत है –

यह विडंबना ही है कि लगभग 75 प्रतिशत भूभाग जलच्छादित होते हुए भी हमारा देश भयंकर जल संकट से गुजर रहा है। स्थिति इतनी भयावह हो गई है कि गांवों में कूए, ताल, तलैया, नदियां सब सूख गए हैं, और अनेक क्षेत्रों में तो नालों के गंदे पानी से गुजर बसर करनी पड़ रही है। नदियों को सूखने से हम लोग बचा नही पा रहे, उन्हें गन्दा कर रहे हैं, अत्यंत खेद का विषय है कि नदियों में मलवा व कारखानों-फैक्ट्रियों का केमिकल युक्त रिसाव किया जा रहा है, कहीं कहीं तो सीवर लाइन तक नदियों से जुड़ी हैं। यह स्थिति अत्यंत ही शर्मनाक है, खेदजनक है। नदियों की सफाई के नाम पर करोड़ों अरबों रुपयों की धनराशि व्यर्थ जा रही है।

जल, दो अक्षरों का यह शब्द केवल एक शब्द ही नही वरन समस्त संसार की जीवन धारा है। केवल यह संशय सदैव रहता है कि पानी को ईश्वर के समकक्ष रखा जाए या उनसे भी ऊपर। परन्तु माना यही जाता है कि जल ईश्वर के प्राकट्य से पूर्व भी उपलब्ध था। इसके अतिरिक्त प्रकृति व प्राणी मात्र को जीवन प्रदान करने का ईश्वर के पास पानी ही सशक्त माध्यम है। अतः दोनों को एक दूसरे का पूरक भी कहा जा सकता है।

भारतीय ऋषि-मुनियों ने पानी को उसके मौलिक रूप में नारायण माना है। वह नर से उत्पन्न हुआ है इसलिये उसे नार कहा जाता है। सृष्टि के पूर्व वह अर्थात नार (जल) ही भगवान का अयन (निवास) था। नारायण का अर्थ है भगवान का निवास स्थान। पानी में आवास होने के कारण भगवान को नारायण कहते हैं। पानी अविनाशी, अनादि और अनन्त है।

आपो नारा इति प्रोक्ता, नारो वै नर सूनवः।
अयनं तस्य ताः पूर्व, ततो नारायणः स्मृतः ।।

ऋग्वेद संहिता में तो जल को अमृत कहा गया है….
अप्सु अन्तः अमृतम् अप्सु भेषजम् अपाम् उत प्रशस्तये, देवाः भवत वाजिनः।

शब्दार्थः जल में अमृत है, जल में औषधि है । हे ऋत्विज्जनो, ऐसे श्रेष्ठ जल की प्रशंसा अर्थात् स्तुति करने में शीघ्रता बरतें।

रामचरित मानस में भी गोस्वामी तुलसीदास जी ने भगवान राम के मुखारविंद से ज्ञानवर्धन कराते हुए कहा है…

क्षिति जल पावक गगन समीरा।
पंच रचित अति अधम शरीरा।।

लेकिन इतने अमूल्य जल का न तो हम भली प्रकार से संचय करते हैं और न ही संरक्षण के उपायों पर अमल करते हैं। जल संकट की जिस विषम परिस्थिति से हम गुजर रहे हैं उसके उत्तरदायी कोई और नहीं वरन हम और आप ही हैं।

सोचिए, कुछ अवश्य सोचिये और अभी से ही निश्चय कीजिये कि नदियों को सूखने से बचायें, उन्हें प्रदूषित न करें, वर्षा का जल संचित करें, जल की एक बूंद भी बर्बाद न करें।

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