खून पसीने की कमाई है। घबराहट तो होती ही है, मैडम जी!

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एक और बैंक, पी एम सी के बाद यस बैंक के पतन ने जमाधारकों के विश्वास को एक बार फिर हिला कर रख दिया है। अंतरराष्ट्रीय अर्थ जगत में इतने संकट आए परन्तु भारतीय अर्थव्यवस्था अविचल रही, भारत ने हर झंझावात का डट कर सामना किया। हमारी अर्थव्यवस्था मजबूत है, क्योंकि हमारी बैंकिंग व्यवस्था मजबूत है, बैंकिंग व्यवस्था इसलिए मजबूत है कि हमारे देश की बचत दर बहुत अच्छी है। यद्यपि अभी यह दर कुछ कम हुई है, फिर भी अपेक्षाकृत ठीक है। वित्त वर्ष 2018-2019 में बचत का प्रतिशत जीडीपी का 30.1% पर पहुंच गया, जो 2011-12 में 34.6 पर्सेंट था और 2007-08 में 36%।

हमारे देश में बाबा दादी के जमाने से लोगों में एक-एक पैसा जोड़ कर रखने की आदत है। पहले मटकों, टिन के बक्सों और दीवारों के अंदर छिपा के लोग बचत का पैसा रखते थे ताकि आपातकाल के समय काम आ सके। बाद में 1969 में बैंकों के राष्ट्रीयकरण के उपरांत जब दर-दर पर बैंकें खुल गई तो लोगों ने अपनी गाढ़ी कमाई बैंकों में जमा करना शुरू कर दी। परँतु जैसे जैसे बैंकों में जमाराशि पर ब्याज दर कम होती गई, सरकार ने भी लघुबचत पर ब्याज कम कर दिए तो लोगों ने बचत राशि बैंकों में जमा करने की बजाय निवेश करना शुरू कर दिया। अर्थव्यस्था की हालत, गलत लोगों को कर्ज देना आदि कारण भी ऐसे रहे जिनसे बैंकों की हालत खराब होती गई।

भारतीय रिजर्व बैंक के मुताबिक 31 मार्च 2015 को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का कुल एनपीए 2,79,016 करोड़ रुपये था जो 31 मार्च 2018 तक बढ़कर 8,95,601 करोड़ रुपये हो गया। सरकार की कोशिशों के बाद 31 दिसंबर 2019 तक यह फिर घटकर 7,16,652 करोड़ रुपये रह गया है।

ऐसा ही यस बैंक में भी हुआ। पूर्व निदेशक कपूर परिवार ने गलत कम्पनियों को कर्जे दिए, पारिवारिक कलह ने प्रबंधन खराब कर दिया, निदेशकों ने ऊंचे दाम पर शेयर बेच कर कमाई कर ली, तिरुपति बालाजी मंदिर ने मोरोटेरियम लगने से पहले 1300 करोड़ रुपये निकाल लिए। सारा संकट आ गया छोटे जमाधारकों पर, जिनकी गाढ़ी कमाई यस बैंक में जमा है।

पहले पी एम सी बैंक में ऐसा हुआ, उससे पहले नीरव मोदी और विजय माल्या हजारों करोड़ ले कर भाग गए, अब 2017 से निगरानी के बावजूद यस बैंक पतन के कगार पर आ गई।

पिछले कुछ वर्षों में रिजर्व बैंक के कार्यो में जिस प्रकार दखल दिया गया, कई गवर्नर और डिप्टी गवर्नर त्यागपत्र देने को मजबूर हुए, बैंकों को पर्याप्त पूंजी नहीं दी गई। इससे बैंकिंग व्यवस्था कमजोर हो रही है। बैंक कमजोर तो अर्थव्यवस्था भी कमजोर,यह मानना ही होगा।

हर दुर्घटना के बाद राजनेताओं का एक ही रटा रटाया बयान होता है घबराने की जरूरत नहीं है।वित्तमंत्री सीतारमण ने भी यही कहा है कि घबराने की कोई जरूरत नहीं है।

यह खून पसीने की कमाई है। घबराहट तो होती ही है, मैडम जी!

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