चलो, तुम भी चलो

चलो,
तुम भी चलो
हम भी चलें
ऐसे देस तुम्हारे पंछी।

जहाँ न तम हो,
न जुल्म सितम हो ।
नील गगन हो,
खिला चमन हो ।
न कोई चिंता,न हो निराशा,
अपने में हर कोई मगन हो।
आशाओं की नूतन रश्मि,
दिग दिगन्त में नित उदित हो।
चहुं ओर हो हंसी खुशी,
उर प्रफुल्लित,मन प्रमुदित हो।

आसमान की ऊंचाई में,
खो जाएं बस तन्हाई में।
न कोई बंधन,न कोई जकड़न,
न विषाद हो,न कोई तड़पन।
नव ऊर्जा का सृजन करें,
विचरण, हो उन्मुक्त करें।
दिनकर की हो शीत लालिमा,
रहे न मन में कोई कालिमा।

बाधाओं से हो न सामना,
लौट आने की हो न कामना।
जीवन की खुशियों को भर लें,
दोनों अपने दामन में।
एक जहां बसा लें अपना,
चांद सितारों के आंगन में।

चलो,
तुम भी चलो
हम भी चलें
ऐसे देस तुम्हारे पंछी

सर्वज्ञ शेखर

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Abhinandan
Abhinandan
June 19, 2019 6:16 pm

Bahut Sundar 🙂

S s gupta
S s gupta
June 19, 2019 9:26 pm
Reply to  Abhinandan

धन्यवाद,अभिनन्दन

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