2 जून की रोटी का उपहास न उड़ाएं

हर साल 2 जून आते ही सोशल मीडिया पर 2 जून की रोटी का उपहास उड़ाते हुए संदेश आना शुरू हो जाते है। कोई कहता है कि दो जून को रोटी जरूर खाना क्योंकि 2 जून की रोटी बड़े नसीब वालों को मिलती है तो कोई फरमा रहे हैं कि केवल दो जून को ही रोटी खाना, यह फिर अगले साल ही मिलेगी।

दो जून की रोटी का मतलब दो जून तारीख से बिलकुल भी नहीं है। जून अवधी भाषा का शब्द है। जून से तात्पर्य है वक्त। अतः 2 जून की रोटी का मतलब है दो वक्त की रोटी।

दो वक्त की रोटी या दो जून की रोटी कमाना उपहास का विषय नहीं है। परिवार दो समय अर्थात सुबह शाम की रोटी का भोजन कर सके, इसके लिये घर के मुखिया को कितना परिश्रम करना पड़ता है यह उससे पूछिये जो सर्दी पानी आंधी वारिश गर्मी की परवाह किये बिना घरों में अखबार बांटता है, उस काम वाली से जानिए जो मालिकों की बदजुबानी और कुटिल निगाहों के तीर सह कर भी झाड़ू पोंछा बर्तन करती हैं, अपने छोटे बच्चे को कमर से बांध कर ईंट सर पर रख कर ढोती है, उससे पूछो जो पोस्ट ग्रेजुएट होते हुए भी लाला की दूकान पर नौकरी कर रहा है औऱ झिड़कियां सुन रहा है।

दो जून की रोटी गरीबों की आवश्यकता है व्यसन नहीं। इस आवश्यकता की आपूर्ति इतनी आसान नहीं है। चौराहों पर खिलौने बेचने वाले बच्चे और हम सबके जूते चमकाने वाले जैसे सारे श्रमजीवी इसके साक्षी हैं।

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